अगर मैं यह कहूँ की दिव्यस्त्री के गुण और अवगुण लक्षण आपने पढ़े होंगे तो कोई ज़्यादा अंतर नहीं रहता दिव्यपुरुष को समझने के लिए। ये उनका ही हिस्सा होते हैं किन्तु मन में प्रश्न तो उठ ही रहे होंगे अंततः दिव्यपुरुष होते कैसे हैं ? ये भी शिव और नारायण के ही स्वरुप होते हैं जैसे दिव्यस्त्री शक्ति का स्वरुप होती हैं। अप्सरा, यक्षिणी, भैरवी होते हैं वैसे ही दिव्यपुरुष भी गन्धर्व, यक्ष, भैरव होते हैं. ये किस जाती के देवता होंगे ये कोई नहीं बता सकता यह सिर्फ इन्हे ज्ञात होता हैं और ना भी ज्ञात हो तो समय उन्हें अपने अस्तित्व के बारें में सारे उत्तर दे देता हैं. पर हाँ इनके जन्म लेने का उद्देश्य बहुत बड़ा होता हैं जैसे की प्रेम का पाठ सिखाना, समाज में नया परिवर्तण लाना, मानवता कल्याण करना, पृथ्वी का संतुलन करना, मानव समाज में रूढ़िवादी विचारों से मुक्त कराना और स्वयं के साथ साथ दूसरों के लिए भी मोक्ष के रास्ते खोलना। यूं कह सकते हैं की ये उत्कृष्ठ व्यक्तित्व के व्यक्ति होते हैं इसलिए तो इन्हे दिव्यपुरुष कहते हैं।
जुड़वाँ आत्मा दिव्यपुरुष के अवगुण
मैंने अपने ज्ञान और अनुभव से इस यात्रा की शोध की हैं सारे दिव्यपुरुष ऐसे होंगे ये मैं क़दापि नहीं कहती इनके प्रकार भी होते हैं जिस कारण कोई ज़्यादा अवगुण से भरा होता हैं कोई कम अवगुण से। अब जो ये लेख पढ़ेगा उसे अपने दिव्यपुरुष के अवगुण समझ आएंगे की कितना सच और कितना अभी सच आना बाकि हैं आपके सामने। हो सकता हैं की कुछ अवगुण अब दिखे कुछ बाद में क्या पता ? किन्तु कहने का ताप्तर्य यही हैं की गुण होते हैं तो अवगुण भी होते हैं इसे स्वीकार करे और ये एक ज्ञान के लिए ही नहीं अपितु इन्हे सुधारने की दृष्टि से भी बता रही हूँ ताकि आप अपने गुण अवगुणो पर कार्य करें। अलग अलग जुड़वाँ आत्मा के जोड़े अलग अलग स्तर के होते हैं अब ये किस स्तर के होंगे ये खुद आप सोचे और अपना आंतरिक कार्य शुरू करे जिन्हे हम इनर वर्क भी कहते हैं। अब बात रही अवगुणों की तो उत्कृष्ठ गुणों के साथ साथ मानव देह में कोई न कोई तो अवगुण होते ही हैं। क्यों होते हैं ? क्योंकि आत्मा पर पिछले संचित कर्मो का भार भी होता हैं अगर ये अच्छे कर्मा लेकर आएं हैं तो बुरे कर्मा भी स्वतः आ जाते हैं जो इस जनम में इनमें साफ़ नज़र आती हैं। इनके कुछ अवगुण लक्षण हैं जो इस प्रकार हैं।
- ये हमेशा किसी भी बातों को पहले बहुत तोलते हैं और कभी कभी बहुत बोलते हैं.
- इन्हे तर्क-वितर्क करना बहुत पसंद होता है और न भी पसंद हो तभी इनका एक स्वाभाव होता हैं जिस कारण से बाकि लोगों पर इनका बुरा प्रभाव भी पड़ता हैं और अच्छा प्रभाव भी. ये बुरा किसी का भी नहीं करते पर इनके हरकतों से अक्सर आस पास ले लोगों को परेशानियां उठानी पड़ती हैं।
- ये कभी कभी बहुत ही भावनात्मक हो जाते हैं जिस कारण इन्हे आसानी से कोई भी छल जाता हैं।
- पर ये बहुत कड़क स्वाभाव के और रूढे वादी भी होते हैं जिस कारण अन्य लोगों को भी इनके कारण समस्याओं का सामना करना पड़ता हैं.
- अभद्र भाषाओँ का प्रयोग करना अभद्र व्यव्हार रखना और कभी कभी स्वाभाव से इतने सक्त हो जाना की इनका ही इसमें हानि हो जाता हैं.
- इनमे आत्मविश्वास की कमी भी हो जाती हैं तो कभी कभी ये धोकेबाज़ी के शिकारी भी बन जाते हैं.
- इन्हे बुरी आदतें बहुत जल्द लग जाती हैं जैसे मांसाहरी, शराब, बीड़ी, नशा करना लड़कीबाज होना और बहुत ही बार तो ये अपने ऊर्जा को गलत दिशा में लगाकर खुद का और दूसरों का भी नुक्सान कर देते हैं।
- घुस्सा करना, झूठ बोलना, सामने वाले पे कभी कभी दया न दिखाना कभी क्रूर हो जाना।
- अगर ये जागरूक नहीं हैं तो जलन की भावनाएं तो बहुत होती हैं खास कर अपने दिव्यस्त्री को लेकर जिस कारण इन दोनों के बीच में अलगाव हो जाता है और इसी कारण से इनके बाकि सम्बन्धियों से भी सम्बन्ध ख़राब हो जाते हैं।
- इन्हे बस अपना वर्चस्व बढ़ाना होता हैं क्योंकि इनमें घमंड की कोई कमी नहीं होती, कभी कभी ये समझ नहीं पातें की ये घमंड हैं या आत्मसम्मान ?
- इन्हे भी डर बहुत होता हैं किसी न किसी चीज़ या बात को लेकर और ये कभी अपनी गलतियां स्वीकार करते ही नहीं क्योंकी ये अपनी कमज़ोरी किसी को भी नहीं दिखाना चाहते। हमेशा इनकी मनमानी चलाते हैं और जहा न चलाएं वहां झगड़े फसाद शुरू कर देते हैं।
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जुड़वाँ आत्मा दिव्यपुरुष के गुण
१. दिव्यपुरुष भगवान के स्वरुप होते है, जिस तरह से दिव्यस्त्री के अलग अलग रूप होते हैं ये ठीक उसी प्रकार उन्ही के स्वरुप होते हैं. यह महानता, न्याय और दया के मूरत होते हैं। पर ये उतने ही सक्त स्वाभाव के होते हैं।
२. ये इतने तेजस्वी और दिव्य आत्मा होते हैं की इनका तेज सामान्य लोग नहीं समझ पातें ना हि संभाल पाते हैं। इनके तेज़ से समाज में एक नया परिवर्तन घटित होता हैं. दिव्यपुरुष जहा खड़े हो जाते हैं वही से एक नया परिवर्तन आना शुरू हो जाता हैं। इसे युग परिवर्तन भी कह सकते हैं। लोग इन्हे भगवान कहते भी हैं और मानते भी हैं।
३. बचपन से इनके अंदर दिव्यता और शालीनता होती हैं पर जब ये जागरूक हो जाते हैं तब इनमे ये गुण तेजी से जागरूक हो जाते हैं और अपने मोक्ष के साथ साथ ये अन्य लोगों को भी अध्यात्मिक तौर से जागरूक करते हैं।
४. इनमें निर्णय लेने की अच्छी क्षमता होती हैं ज़्यादा तौर पर ये न्याय के दृश्टिकोण से ही निर्णय लेते हैं इसलिए ये भगवान भी कहलाते हैं। ये कम बीमार पड़ते हैं जो की इनमें दिव्यता होती हैं तो ये खुद ही अपने रोग को बहुत हद तक सुधार देते हैं या नष्ट कर देते है।
५. दिव्यपुरुष एक उच्च कोटि के वैद्य [ हीलर ] भी होते हैं. जिस कारण ये समाज में एक प्रतिष्ठित व्यक्ति और अच्छे वैद्य भी कहलाते हैं।
६. ये दिखने में शायद आपको मॉडर्न या साधारण से लगे परन्तु ये अंदर से एक योगी होते हैं, इनमे आकर्षण बहुत होता हैं तो स्वभाविकता ही लोग इनके वश में रहते हैं ये कुछ ना भी करें तो भी लोग इनसे या तो जलते हैं या प्रभावित रहते हैं। इन्हे हमेशा अपनी भक्ति पूरी करनी की चिंता रहती हैं , साथ में इन्हें अपनी दिव्यस्त्री की भी बहुत आवश्यकता होती हैं। जिसके बिना इनकी भक्ति और मोक्ष अपूर्ण रहती हैं।
७. दिव्यस्त्री के बिना ये हमेशा ही अपने आप को अपूर्ण महसूस करते हैं। दिव्यस्त्री के अलावा इन्हे कोई पा भी नहीं सकता। कर्म संबंध में चाहे जितना अटके हो परन्तु प्रेम तो केवल दिव्यस्त्री से ही प्राप्त होता हैं , बाकियो से तो बस कर्म का सम्बन्ध होता हैं। और ये बात यह अच्छे से जानते हैं तभी ये हमेशा दिव्यस्त्री को ही चुनते हैं।
८. इनकी जागरूकता के बाद किसी भी रिश्ते पर ये सिर्फ और सिर्फ अपने दिव्यस्त्री को ही चुनते हैं। चाहे इनके जीवन में जो भी हो इन्हें ये ज्ञात रहता हैं की दिव्यस्त्री के बिना इनका जीवन, भक्ति और मोक्ष अपूर्ण ही रहती हैं.
९. इनमे भी इंटुइशन बहुत अच्छी होती हैं जिन्हे हम सहज पाठक भी कहते हैं। जिस कारण ये समाज में अच्छे कार्य करते हैं और नए विचारों से नयी दिशा समाज के लिए बनाते है।
१०. इनमें इतनी शुभता होती हैं की ये जहा जाए वहाँ के बिघडे काम सवर जाते हैं।
११. इनमें सम्भोग की भावना बहुत ज़्यादा होती हैं जिस कारण इनके जीवन में दो से अधिक पत्नियां भी होती हैं परन्तु जब ये जागरूक हो जाते हैं तो ये सिर्फ अपने दिव्यस्त्री के ही होते हैं और अपने वासना को शुद्ध रुपी प्रेम में परिवर्तित करते हैं।
१२. जिस प्रकार दिव्यस्त्री दिव्यपुरुष के बिना अपूर्ण हैं, ठीक उसी प्रकार दिव्यपुरुष भी दिव्यस्त्री के बिना अपूर्ण हैं इसलिए तो ये एकदूसरे के पूरक हैं।
१३.सिर्फ दिव्यस्त्री ही होती हैं जो इन्हे पूरा कर पाती हैं और इनकी ऊर्जा को पूरी तरीके से शांत करती हैं तब ये अपने आप में एक पूर्णता अनुभव करते हैं फिर ये अपनी भक्ति पूरी कर पाते हैं.
१४. यह झूठ, फरेबी, धोखाधाड़ी, अपमान और अपनी ऊर्जा को व्यर्थ नष्ट करना कदापि पसंद नहीं करते।
१५. ये हर परिस्थिति में बहुत शांत आनंदित रहते हैं। और किसी विकट स्थिति में अगर ये घिर गए हो तो ये बहुत जल्दी से अपना रास्ता ढूंढ लेते हैं या रास्ता बना ही लेते है। यह बोलने में महारथी होते हैं इसलिए किसी से भी अपना कार्य आसानी से करवा ही लेते हैं।
१६. इनके पास गुप्त विद्याएं भी होती हैं जो की सिर्फ और सिर्फ एक अच्छे शिष्य को ही ये प्रदान करते हैं।
१७. इन्हें समाज से कोई लेना देना नहीं होता हैं परन्तु अपना कार्य बहुत अच्छी करते हैं और साथ में समाज की निस्वार्थ सेवा भी करते हैं तभी तो ये भगवान भी कहलाते हैं।
१८. इनमें निस्वार्थ की भावना बहुत होती हैं इसलिए ये अच्छे समाजसुधारक भी बनते हैं और अच्छे राजनैतिज्ञ भी और जब भी ऐसा मौका आता हैं तो ये हमेशा ही एक बहुत अच्छे पद पे बैठे होते हैं। यह राजाओं जैसे ज़िन्दगी जीते हैं।
१९. ये लोगों में आपसी प्रेम, समर्पण भावना, धर्मस्थापना, पूजापाठ भी सिखाते हैं समाज में सही गलत का पांठ भी पढ़ाते हैं क्योंकि यह बहुत साहसी होते हैं इनमे डर नहीं होता इनमे डर बहुत कम मात्रा में होता हैं जिस कारण लोगों के ये प्रिय व्यक्ति भी बनते हैं और निडर योद्धा भी कहलाते हैं।
२०. ये साफ़ सफाई ज्यादा पसंद करते हैं, इनमे सिखने और सिखाने की क्षमता अपार होती हैं, ये एक अच्छे शिष्य होते हैं जिस वजह से ये समाज में एक सच्चे और अच्छे उच्च कोटि के गुरु भी बनते हैं, ये अध्यात्मिक गुरु, धरम गुरु, प्रोफेसर, अध्यापक, न्यायधीश और समाजसुधारक भी बनते हैं।
२१. ये इतने सौभाग्यशाली होते हैं की इनके जन्म के समय से ही ब्रह्माण्ड की शक्तियां साथ होती हैं, पूरा सहयोग होता हैं और समय समय पर इनके सारी इच्छाएं पूरी होती रहती हैं। ये अपने आप में एक उच्च कोटि की आत्मा होती हैं तो इनके मंज़िलें भी बहुत संघर्ष से भरे होते हैं और ये आसानी से उन समस्याओं से बाहर भी निकल जातें हैं और निखर आते हैं।
२२. ये अपने साथ साथ लोगों का भी अच्छा परिवर्तन करते हैं, इनमें ये कला जन्म से ही उपस्थित होती हैं बस शर्त इतना की इनमे ये सही दिशा में सही गुरु के मार्गदर्शन में जगाना होता हैं। किसी किसी में ये पहले से ही जागरूक होते हैं बस दिशा की और आज्ञा की आवश्यकता होती हैं। अपने गुरु के शब्दों का पालन करना और समय पर जान न्योछावर करना पड़े तो कभी दोबारा दोबारा सोचेंगे भी नहीं ऐसी क्षमता इनमें अपार होती हैं।
२३. इनमें योग, ध्यान, तंत्र विद्या सिखने और सिखाने की क्षमता बहुत होती हैं दिव्यपुरुष अपना औदा आध्यात्मिक जगत में भी अच्छे पद पर स्थापित करते हैं। जिस वजह से ये सद्गुरु भी कहलाते हैं। ज्यादातर दिव्यपुरुष अपना जीवन साफ़ सुथरा, शांति पूर्वक और साधारण तरीके से ही जीना पसंद करते हैं।
२४. दिव्यपुरुष नीडर, पराक्रमी, सुन्दर, आकर्षित, आवाज़ में तेज़, पूर्ण पौरुषता लिए, मजबूत भुजाएं, साहस भरा सीना, आँखों में संमोहन चेहरे पे १२ सूर्य का तेज, शांतचित्त मन, बुद्धिमान, दयालु, प्रकृति के रक्षक, कोमल ह्रदय, कठोर निर्णायक, कामकला से संपूर्ण, उच्च कोटि के योगी, महान, धैर्यवान, शूरवीर, सौभाग्यशाली, पुण्यवान, एकनिष्ठ और मर्यादित होते हैं।
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यदि मैं कहूँ की आज के युग में ऐसा कौन होगा, तो मेरी नज़र में श्री संत गुरु राधा स्वामी, सद्गुरु वासूदेव जग्गी, गुरु सूरज प्रताप जी, गुरु धीरेन्द्र शास्त्री जी जिन्हे हम बागेश्वर धाम के नाम से जानते हैं, गुरुदेव श्री नंदकिशोर श्रीमाली जी, गुरुदेव श्री कैलासचंद्र श्रीमाली जी, गुरुदेव श्री अर्विंद श्रीमाली जी हैं। उनका चरित्र और उनका जीवन आप देखोगे तो आप भी विश्वास कर लोगे। और मानव सेवा और विचार परिवर्तन में कहु तो श्री रतन जी टाटा और आचार्य प्रशांत हैं। यह मैंने अपने दृष्टिकोण की बात कही हैं आपके दृष्टिकोण से कोई और होगा किन्तु उदाहरण के दृष्टि से मैंने आपको समझाने का प्रयास किया हैं। और यदि मैं भूतकाल की बात करू तो ऐसे बहोत नाम हैं आपको बताने के लिए। जैसे की भगवान में श्री रामचंद्र जी, श्री कृष्ण, श्री गुरु आदिशंकराचार्य, महावीर जैन , गौतम बुद्धा , योद्धा में छत्रपति शिवाजी महाराज, संभाजी महाराज, पोरस, चंद्रगुप्त मौर्य, अशोका, पंचपांडव, फिर संतों में श्री संत ज्ञानेश्वर देव, श्री संत तुकाराम महाराज, परमहंस श्री रामकृष्ण, स्वामी विवेकानंद, श्री संत वामखेपा, संत कबीर, दास, गुरु वों में गुरु नानक जी, गुरु गोबिंद सिंह, गुरु ओशो, डॉ. श्री नारायण दत्त श्रीमाली जी जो परमहंस श्री सदगुरुदेव निखिलेश्वरानंद जी ही हैं। आप इनके जीवन का इतिहास उठाकर देखिये कही भी सहज नहीं था इनके लिए अपना व्यक्तित्व ऊँचा करने के लिए किन्तु इन्होने कर के दिखाया और आज हम सभी इन्हे भगवान के रूप में पूजते हैं, कभी योद्धा के रूप में हमारा सीना गर्व से चौड़ा करते हैं, तो कभी संतों के समक्ष अपना शीश झुकाकर अपने आप को समर्पित करते हैं। यदि आप दिव्यपुरुष हैं और जागरूक नहीं या आपको भी ऐसा बनना हैं तो आज से अभी से अपने कर्मों को हाथ लो और बुरे कर्मो को नष्ट करने की ज़िम्मेदारी उठाओ आपके नसीब में चाहे जो लिखा हो पर आपके कर्मों को बदलना आपके हाथों में हैं और नसीब तब बदलता हैं जब आप अपने कर्मा बदलते हो। आप सोए हुए हैं तो जाग जाओ और अपने अशुद्धियों पर कार्य कीजिये आप देखोगे की आप कब श्रेष्ठ बन गए आपको ज्ञात ही नहीं। ये प्रक्रिया एक दिन की नहीं परन्तु एक दिन में अवश्य घटित हो जाएगी और वो क्षण आपको अपने जीवन में लाना हैं। समय तब बदलता हैं जब आप बदलते हो और अब आप सभी के पास समय बहुत कम हैं इसे व्यर्थ न गवाएं इसे उपयोग में लाये। अन्त में इतना ही कहना पर्याप्त मात्र समझती हूँ की आपके जीवन के उद्देश्य, मानव कल्याण, भक्ति पथ, मोक्ष और आपकी दिव्यस्त्री आपकी राह देख रहे हैं। आप सभी अपने जीवन के उद्देश्यों को बिना रुके बिना थके पूर्ण कीजिये और पूर्ण करने की क्षमता परमात्मा आपको शक्ति और सही मार्गदर्शन करें। मुझे विश्वास हैं की आपको इस लेख से बहुत कुछ प्राप्त हो गया हैं और यदि कुछ प्रश्न हैं तो आप मुझे सोशल मीडिया के पेज से, कमैंट्स बॉक्स से , ईमेल से संपर्क कर सकते हैं। मैं अवश्य ही आपकी ह्रदय से सहायता करुँगी। आज के लेख में बस इतना ही अपने वाणी को विश्राम देते हुए आपसे फिर मिलने की आज्ञा लेती हूँ और बहुत जल्द एक नए विषय पे लेख लाती हूँ तब तक आप अपना और अपनों का ध्यान रखे आनंदित रहिये और अपने जीवन के उद्देश्य को पूर्ण करते रहिये।
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