आपका बहोत बहोत स्वागत हैं आध्यात्मिक जगत के ज्ञान भरे लेख मे और आपका ह्रदय से धन्यवाद् करती हूँ की आप अपना कीमती समय निकल कर यहाँ आये। आप यहाँ अपने विचार व्यक्त करने के लिए सहेज मेहसूस कर सकते हैं। इस कोरोना के चलते हम सब जानते है की यह हम सब के लिए बहोत ही कठिन समय हैं और हमारा विश्वास ही हमारी ताक़त हैं। इन सारी परेशानियों से लड़ना एक कठिन अवस्था है हमारे लिए और हमारे परिवार के लिए भी। किंतू मुझे विश्वास हैं की आप कुशल- मंगल होंगे। मेरी यही प्रार्थना हैं आपके लिए की परमेश्वर आपको और आपके परिवार को कोरोना की कठिन घड़ियों से लड़ने की शक्ति आवश्य दे।
आज हम कुण्डलिनी षष्टचक्र / साथ चक्र भेदन के विषय में जानेंगे, की क्या ,कितने और कैसे ये चक्र होते हैं ? कैसे इन चक्र का भेदन होता है मतलब खुलते है। जैसे की मैंने पिछले कही लेख में कुण्डलिनी चक्र का पहला चक्र मूलाधार चक्र के विषय को विस्तार से बताया हैं। और भी आगे सारे चक्रों की श्रृंखला आएंगे। आज मैंने सोचा की थोड़ा इस विषय पर प्रकाश डालू की दरअसल ये कुण्डलिनी चक्र क्या हैं? और कितने होते है ? फिर उसके बाद हम बाकी के षट्/छः चक्र के बारें में जानेंगे। ताकि आपको थोडासा इस विषय में ज्ञात हो की ये क्या होते हैं? और आपको समझने में भी आसानी हो।
कुण्डलिनी षट्चक्र / सप्तचक्र क्या होते हैं ?
मनुष्य का शरीर सात चक्रों पर अवलंबून होता हैं। ऊपर के जो सात लोक हैं जिन्हे गायत्री मंत्र की सप्त वचन कहते है और इन्ही को मुलाधारादी चक्र या सहस्रारादि चक्र कहते हैं और कुण्डिलिनी योग या लययोग भी कहते हैं। मनुष्य का जो शरीर होता हैं वो मेरुदण्ड या रीढ़ हड्डी से आधारित होता हैं यह ३३ अस्थि खण्डों के जुड़ने से बना हुआ होता हैं। इनका जो सम्बन्ध होता हैं वो ३३ कोटि देवताओं से है जैसे की प्रजापति, इन्द्र, अष्टवसु, द्वादश आदित्य, और एकादश रूद्र से हैं। हमारी हड्डीयोन का जो भीतर भाग होता बिलकुल खोकला होता हैं और निचे का जो नोकीला और छोटा होता हैं वो इसके आस पास का भाग 'कन्द ' कहते हैं इसमें माँ जगतजननी महाशक्ति प्रतिमूर्ति का कुण्डलिनी का निवास हैं। हमारे शरीर में ७२ नाड़ियों की स्थिति कही गयी हैं इनमेसे मुख्या नाड़ी १४ हैं और उनमे से भी प्रमुख नाड़ियाँ ३ हैं। जिन्हे हम इड़ा, पिंगला, सुषुम्णा नाड़ी कहते हैं। इड़ा नाड़ी जो शरीर के बाएं जिसे स्त्री तत्त्व कहा जाता हैं ओर पिंगला नाड़ी जिसे पुरुष तत्त्व कहा जाता हैं जो शरीर के दायी ओर से लिपटी हुयी रहती हैं परन्तु जो सुषुम्णा नाड़ी होती हैं वो रीढ़ के हड्डी के भीतर कंदभाग से शुरू होकर कपालमें स्थित सहस्रदलकमल जाती हैं। इस सुषुम्णा नाड़ी के बिच भी तीन नाड़ियां होती हैं जिसे वज्रा, चित्रणी, तथा ब्रह्मनाड़ी हैं। योग अभ्यास के द्वारा कुण्डलिनी शक्ति इसी ब्रह्मनाड़ी के द्वारा कपालमें स्थित ब्रह्मरन्ध्रक तक जाकर पुनः लौट आती हैं मतलब की निचले हिस्से से शुरू होकर कपालमें जिस स्थानपर खोपड़ी की विभिन्न हड्डीयाँ एक स्थान पर मिलती हैं और जिसके ऊपर शिखा राखी जाती हैं वह से पुनः लौट आती हैं।
रीढ़के हड्डी मेरुदण्ड के भीतर ब्रह्मनाड़ी में पिरोये हुए छः कमलोंकी कल्पना की जाती हैं। यही कमल कुण्डलिनी षट्चक्र कहते हैं। प्रत्येक कमल के भिन्न संख्याओं में वर्ग हैं और इनके रंग भी भिन्न हैं ये छः चक्र शरीर के जिन अवयवो के सामने रीढ़ में स्थित है उन्हें ऐसा पुकारते है उनका नाम मूलाधार चक्र, स्वाधिष्ठान, मणिपुर, अनहद, विशुद्धि, आज्ञा और सहस्रार चक्र हैं।
मूलाधार चक्र
जो सबसे निचे की और 'कन्द' में लगे हुए गुदा और लिंग के बीच भाग में स्थित हैं। इसे कमल के पंखुडिया ४ वर्ग में हैं। हर पखुंड़ि पर वँ, शँ, षँ, सँ बीज मंत्र हैं। इसका रंग रक्त वर्ण लाल हैं। इसमें माँ आदि शक्ति देवी, देवता, ब्रह्मा और डाकिनी विराजमान हैं। इसका मंत्र ' लं ' हैं। इस यंत्र के मध्य में शिवलिंग हैं जिसके चारों ओर साढ़े तीन फेरे मारे सर्प पिण्ड को लिपटे अपने ही मुंह में पुँछ दबाकर हुए निचे की ओर मुंह कर सुप्त अवस्था में विराजमान हैं इसी को कुण्डलिनी भी कहते हैं। यह पृथ्वी तत्त्व से सम्बंधित हैं। इसका वाहन हस्त (हाथी) हैं। प्राणायाम, योग और शक्तिपात दीक्षा से यह शक्ति जागृत होकर विज की तरह मेरुदंड के भीतर ब्रह्मनाड़ी में प्रवाह होकर उपरकी ओर चलती हैं। यह चक्र जीवन की सुरक्षा, तंत्र बांधा, प्रार्थना, १६ सिद्धि, मैथुन और मोक्ष का द्वार के सम्बंधित पहचाना जाता हैं।
स्वाधिष्ठान चक्र
इस चक्र का स्थान लिंगस्थान के सामने हैं। इस कमल के पंखुड़ियाँ ६ वर्ग में हैं। वर्ग में बँ, भँ, मँ, यँ, रँ, लँ बीज मंत्र हैं। यह अर्धचंद्र के आकर में हैं और चन्द्रशुभ्रा वर्ण यन्त्र हैं इस चक्र का रंग सिंदूर वर्ण (नारंगी) हैं। चक्र का बीज मंत्र ' वँ ' हैं और वाहन मकर हैं। चक्र में देव तथा देव शक्ति देव विष्णु देवता और राकिनी का निवास हैं। यह जल तत्त्व चक्र हैं। यह इच्छाशक्ति, भावनाएँ, मैथुन क्रिया, और कला से सम्बंधित होता हैं।
मणिपुर चक्र
यह चक्र नाभि द्वार के सामने मरुदण्ड के भीतर स्थित हैं। इस कमल का रंग नीलवर्ण हैं और १० वर्ग में पंखुड़ियां विभाजित हैं जिसपे अक्षर ड़ँ, ढँ, णँ, तँ,थँ, दँ, धँ, नँ, पँ, फँ हैं। इस चक्र यंत्र का मंत्र ' रं ' हैं और वाहन मेष हैं। यह अग्नितत्व चक्र हैं और इसका रंग पितांबरवर्ण (पीला ) हैं यहाँ त्रिकोण में यन्त्र हैं और इस यन्त्र का रंग श्वेत पीला हैं। इस चक्र यंत्र के देवता बुद्ध ,रूद्र और लकिनी हैं। यह सिद्धि, आत्मविश्वास, ध्यान, धन, रुप सौंदर्य और साहस के गुण से होता हैं।
अनाहत चक्र
यह चक्र ह्रदय द्वार के समक्ष गहरा लाल रंग में १२ वर्ग में विभाजित कमल का बना हैं। वर्ग में कँ, खँ, गँ, घँ, ड़ँ, चँ, छँ, जँ, झँ, ञ (ज़), टँ, ठँ बीज अक्षर हैं। इसका मंत्र ' यं ' हैं और वाहन मृग हैं। यह यन्त्र षट्कोण धूम्रवर्ण हैं। चक्र का रंग हरा हैं और वायु तत्त्व से सम्बंधित हैं। यंत्र के देवता और देवशक्ति ईशान, रूद्र और काकिनी हैं। इस यंत्र के त्रिकोण से सम्बंधित ' वाण ' नमक का स्वर्णकांतिवाला शिवलिंग हैं इसके ऊपर एक छिद्र हैं जिससे लगके अष्टवर्ग वाला हत्पुण्डरीक नमक कमल हैं। इसमें उपास्य देवका ध्यान किया जाता हैं। यह प्रेम, करुणा, दया, क्षमा, गुण से होता हैं।
विशुद्ध चक्र
इस चक्र की स्थिति कंठ द्वार के सामने हैं और इसका रंग नीला हैं। इस कमल के पंखुड़ियां १६ वर्ग में विभाजित हैं जिसके अक्षर ' अ ' से लेकर 'अ:' तक मणि गयी हैं। चक्र का यंत्र पूर्ण चंद्राकर हैं और आकाश तत्त्व या शुन्य तत्त्व से पहचाना जाता हैं। यंत्र का बीज मंत्र ' हँ ' हैं इसका वाहन हस्त हैं। इसके देवता और देवशक्ति पंचवक्त्र सदाशिव, देवी सरस्वती और शाकिनी हैं। यह चक्र कला, वाकसिद्धि, वचन और ध्यान का प्रतिक होता हैं।
आज्ञा चक्र
यह चक्र ब्रह्मरंध्र के सामने मेरुदंड में ब्रह्मनाड़ी में स्थित हैं। मतलब माथे में दोनों भुवायें के बीच विद्यमान हैं। चक्र का रंग बैंगनी गुलाबी हैं इस का कमल स्वेत वर्ण का होकर पंखुड़ियां २ वर्ग में हैं। इस् पे ' हँ ' और ' क्षँ ' अक्षर हैं। यंत्र ' इतर ' नमक अर्धनारीश्वर का लिंग हैं। यह महत्व का स्थान हैं और बीज यंत्र ' ॐ ' प्रणव हैं। बीज का वाहन नाद हैं इसके ऊपर विंदु भी हैं। इस चक्र क्र देव उपर्युक्त इतर लिंग और देवी शक्ति हाकिनी हैं। यह शांति, मोह से परे, सत्य द्वार, त्रिकाल दर्शी और ध्यान का प्रतिक हैं।
सहस्रार चक्र
इन छः चक्र के उपरांत मेरुदंड के ऊपरी सिरपर शिखा पर सहस्रा मतलब १००० पखुड़ियों वाला कमल हैं जहा परम शिव विराजमान हैं। इसके हज़ार वर्ग में बीस-बीस बार प्रत्येक स्वर और व्यंजन स्थित हैं ऐसा मन गया हैं। परम शिव से मिलने माँ आदिशक्ति कुण्डलिनी शक्ति का संयोग होता हैं। और सारें चक्र के ऊपर से चलकर कुण्डलिनी शक्ति सहस्रार में जाती हैं और घूम के पुनः लौट आती हैं। मनुष्यों ने पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, और आकाश तत्त्व जैसे नश्वर बुद्धि तत्वों को एक दूसरे में लीन करके अंत में अमर और अद्वैतरुप अनुभव करना चाहिए। और यही योगी पुरुषों का लक्ष्य भी होता हैं।
यह विषय अत्यंत ही गहन हैं और उतना ही खोल हैं यह साधारण से मनुष्यों के समझ के बाहर होता हैं इसे समझने के लिए आपको आध्यात्मिक बनना अवश्य हैं और निरंतर ही अपने कर्मों को शुद्ध रखना अनिवार्य हैं। ' शक्ति अंक ' पुराण जो महाशक्ति आदिशक्ति का पुराण हैं। इस में विषय को अत्यंत गहन से बताया हैं परन्तु जो इस ज्ञान को समझ पता हैं वही इसका फायदा ले पता हैं। माँ आदि शक्ति ही विविध नमो से जानी जाती हैं जैसे की शिवा, धात्री, ब्राह्मी, वैष्णवी, रुद्रशक्ति, प्रकृति, भद्रा, नित्य, गौरी, शक्ति, पराशक्ति और महादेवी और भी न जाने कितने ऐसे नामो से माँ आदि शक्ति को देवताओं ने सम्भोदित किया हैं। और इन्ही को प्राणशक्ति ही जीवन शक्ति कहते हैं। शास्त्रों में प्राणशक्तियोँ के केन्द्रीभूत शक्ति को ही कुण्डलिनी शक्ति कहते हैं। जिस तरह से पर्वत, अरण्य, समुद्र, आदि धारण करने वाली धरती का आधार अनंत नाग हैं वैसे ही शरीरस्थ समस्त गति और क्रिया-शक्ति का आधार भी कुण्डलिनी शक्ति हैं। समस्त शक्ति एक स्थल में कुण्डलिनी बनकर रहती हैं ( सर्प के रूप में ) रहती हैं इसलिए इसे कुण्डलिनी शक्ति कहते हैं। है यह शक्ति शक्तिपात से तो जागरूक नहीं होती किन्तु शक्तिपात दीक्षा लेने के उपरांत आपको निश्चय ही साधना करना अत्यंत अनिवार्य हैं। जिससे की आपके साधना से कई जन्मो से चले आ रहे पाप मिटकर आपकी कुण्डलिनी जागरूक होने में आवश्यक होती हैं। यह तो माँ आदि शक्ति ही अपनी इच्छा से मनुष्य को जो चाहे वो बना देती हैं उसके इच्छा के विरुद्ध तो देवता भी नहीं तो फिर हम मनुष्य कहा ?
आज के लेख में मैंने बहोत ही सरल से शब्द्द और कम शब्दो में समझाया हैं। पिछले कई विषय में मैंने
मूलाधार चक्र के विषय में बताया हैं और भी चक्र के विषय में हम आगे चर्चा करेंगे बहोत गहन से। परन्तु मैं पुनः यही कहती हूँ की इसे आप तभी समझ पाएंगे जब आप स्वयं जागरूक हो जायेंगे अन्यथा यह विषय आपके समझ के बाहर हैं। इसे अपने आप न करें इसे किसी योग्य गुरु के मार्गदर्शन के अनुसार करें अन्यथा इसके परिणाम विपरीत दिशा या मृत्यु को भी आमंत्रित होती हैं। अच्छे - अच्छे साधकों को पागल या मृत्यु के घाट उतरते देखा गया हैं। इसी कारन से आप योग्य गुरु के आदेश और मार्गदर्शन के अनुसार ही कुण्डलिनी जागृत करें। इस विषय में कितना कुछ भी कहूं तो बहोत ही काम हैं पर समय की पाबंदियों के कारन से आपसे विदा लेना भी अनिवार्य हैं। अगले विषय में मैं आपको कुण्डलिनी शक्ति कैसे जागरूक होती हैं यह समझाउंगी। आप मुज़से जुड़े रहिये और अध्यात्मिक जगत के ज्ञान का लाभ उठाते रहिये। अब आपसे विदा लेने की आज्ञा लेती हूँ और फिर मिलने की इच्छा व्यक्त करती हूँ। तब तक आप अपना ध्यान रखिये और ध्यान करते रहिए क्या पता माँ कुण्डलिनी शक्ति आपमें कब जागरूक हो और यह सुखद ज्ञान आपको कब प्राप्त हो ? इसी के साथ में मिलती हूँ आपसे अगले लेख में और आप सभी के लिए यही प्रार्थना हैं मेरी की आप पर प्रभु की कृपा दृस्टि और आशीर्वाद हो आनंदित रहिये स्वस्थ रहिये आपके घर में बरकत रहे और आपका जीवन आबाद रहे।
🙏जय गुरुदेव, हर-हर महादेव। 🙏
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