आपका ह्रदय के गहराई से बहोत-बहोत स्वागत करती हूँ मेरे अध्यात्मिक जगत के ज्ञान भरेलेख में। सबसे पहले तो आपका ह्रदय से धन्यवाद। अपना कीमती समय निकाल कर आप इस लेख पर आयें है। मुझे विश्वास हैं की आप सब कुशल मंगल होंगे। आपने मेरे पिछले लेख में जाना होगा की आध्यात्मिक परिचय और अखंड आनद क्या हैं? आज मैं कुछ ऐसा विषय लेकर आयी हूँ जो शायद आपने सुना न होगा या फिर आप परिचित होगे। जुड़वाँ आत्मा या जुड़वाँ लौ या ट्विन फ्लेम आज इसी विषय पर चर्चा होगी की क्या होते है ये जुड़वाँ आत्मा ? क्यों और कैसे होते हैं ? इस विषय में बहुत ऐसी जानकारी हैं जो आपको पता होना अत्यंत आवश्यक हैं। तो आईये जानते हैं और समझते हैं इस पवित्र बंधन के विषय को।
पृथ्वी पर जन्म लेने से पहले जुड़वाँ आत्मा का स्वर्ग से विरह: |
जुड़वाँ आत्मा या जुड़वाँ लौ (ट्विन फ्लेम ) क्या हैं ?
हमने जुड़वाँ बच्चे सुने हैं जो माँ के कोंख से जनम लेते हैं ,किन्तु ये जुड़वाँ आत्मा नहीं होती पर इनके कुछ आदत या शक्ल एक जैसी होती हैं मतलब ये शारीरिक रूप से एक जैसे हो सकते हैं। मगर ये जुड़वाँ आत्मा के विषय से अलग हैं, जुड़वाँ आत्मा एक आत्मा के दो टुकड़े होती हैं मतलब आधे आधे हिस्सों में बाटी होती हैं। ये कब होता हैं जब कोई भी आत्मा पृथ्वी पर जन्म लेती हैं तब उसकी आत्मा आधे भाग में बट जाती हैं और ये अपना आध्यात्मिक स्तर यानि की मोक्ष पाने के लिए या फिर कुछ बड़ा और पृथ्वी के अच्छे परिवर्तन के लिए और प्रेम सीखाने आती हैं। ये आत्माएं कुछ ख़ास किस्म की होती हैं। यह आत्मा अपने साथ साथ अन्य लोगों का भी भला करने आती हैं। कहते हैं की न जाने कितने जनम से ये साथ होती हैं मिलते हैं और बिछड़ जाते हैं। जब तक की इनका कर्म ख़तम न हो तब तक इनको मोक्ष प्राप्त नहीं होता। इनकी मोक्ष प्राप्ति के लिए ही इनकी जैसे ही दूसरी आत्मा इनके जीवन में प्रवेश करती हैं। इनको शिवशक्ति का प्रतिक भी कहाँ गया हैं ,जैसे शिव के बिना शक्ति नहीं शक्ति बिना शिव नहीं वैसे ही ये एक दूसरे के बिना एक नहीं। हम जैसे शिव शक्ति को अर्धनरेश्वर के रूप में देखते हैं।अक्सर इन्हें ऊर्जा के स्वरुप में देखा जाता हैं। इनको भी शिव शक्ति का स्वरुप कहा जाता हैं जैसे की हमारे शरीर का बायां भाग शक्ति यानि स्त्री का होता हैं और दाया भाग शिव का यानि पुरुष का इन्ही को हम ऊर्जा के स्तर रूप से जानते हैं और मैं इसी ऊर्जा की बात कर रही हूँ। परंतू इनके अंदर जो ऊर्जा स्तिर नहीं रहती या फिर इनमें जो कमियाँ और इच्छायें होती हैं ये उन्ही को पूरा करने आते हैं। मतलब ये उन्हें जागरूक करने आते हैं, अपना मकसद याद दिलाने आते हैं।
कैसे और क्यों होता हैं इनका जन्म ?
जब एक आत्मा को अगर मोक्ष पाना हो या उसके कर्म पूर्ण करने के लिए पृथ्वी पर आके वापिस वही जाना हो जहा से वो आयी हैं और कर्म ख़त्म करके कुछ बड़ा या कुछ ख़ास मकसद से ये जन्म लेती हैं तब उस दौरान एक आत्मा दूसरे हिस्से में बट जाती हैं। ये एक तो साथ में जन्म लेती है मगर अलग अलग घर या जाती में या फिर आगे पींछे जन्म लेती हैं। ये देवदूत के श्रेणी में आते हैं ज्यादातर ऐसा देखा गया हैं। भगवान जब किसी ख़ास मकसद के लिए पृथ्वी पर संतुलन के लिए कोई बड़ा काम करना होता हैं तब ये आत्माएं जन्म लेती हैं। और अपना काम पूरा करती हैं चाहें जो हो पर कुछ ऐसी आत्माएं भी होती हैं जो यही पृथ्वी पर रह जाती हैं वो इसलिए क्यूँकि इनके कर्म ख़त्म नहीं हुए होते हैं या फिर इनकी कुण्डलिनी शक्ति जागरूक नहीं होती हैं या फिर इनको याद ही नहीं रहता की किस मकसद के लिए ये पृथ्वी पर आएं थे। कहते हैं की ये "दो जिस्म एक जान होते हैं " और ये सही भी हैं इनको बचपन से हमेशा से ही अंदर ही अंदर एक खालीपन सा महसूस होता रहता हैं और इनका वो खालीपन सिर्फ और सिर्फ इनकी दूसरी आत्मा ही पूरा कर सकती हैं चाहे इनकी ज़िन्दगी में कोई कितना भी अच्छा इंसान आये इनके अंदर का खालीपन और जीवन का मकसद अधूरा ही रहता है। हमारे अंदर कोई बात पूरी करने की इच्छा होगी या हमारा मकसद होगा ये उन्हें पूरा करने के लिए आती हैं मतलब की ये हमारे अंदर की सोयी हुई शक्तियों को जगाने आती हैं ,और हमें हर दशासे सम्पन्न करने के लिए आती हैं।
कितने प्रकार के रिश्ते होते हैं जुड़वाँ आत्मा के ?
कहते हैं की इस दुनिया में सिर्फ १,४४,००० ही जुड़वाँ आत्मा होती हैं। मगर ऐसा नहीं हैं, हम सबकी जुड़वाँ आत्मा होती हैं पर अपनी दूसरी जुड़वाँ आत्मा से मिलना हमारे कर्म और हमारे इच्छा पर निर्भर होता हैं। जब आत्मा बहुत सारे जनम लेके थक जाती हैं और जब उसका मन इस दुनियादारी से उठने लगता हैं और उसका झुकाव आध्यात्मिक के तरफ मुड़ने लगता हैं, या फिर अब उसके बुरे कर्म खत्म होने लगते हैं तब हमारी जुड़वाँ आत्मा हमारे जीवन में प्रवेश करती हैं। जब ये दूसरी आत्मा आपके सामने आएगी तो आप खुदबखुद पहचान जाओगे। इसके विषय में आपको अगली लेख में बताउंगी। ये किसी भी रूप में आपके सामने आ सकती हैं। कभी कोई ऐसा भी रिश्ता होता हैं जो दुनिया की नज़रों में गलत हैं। जैसे की स्त्री की आत्मा पुरुष में या पुरुष की आत्मा स्त्री में या तो दोनों शारीरिक से स्त्री होगी या पुरुष पुरुष होते हैं। और कोई ऐसा भी रिश्ता होता है, जहा पुरुष की आत्मा स्त्री में होती हैं और उसका साथी पुरुष हो सकता हैं। और इसका उल्टा भी होता हैं मतलब विरुद्ध शरीर में विरुद्ध आत्मा होती हैं। ऐसे में इनके रिश्ते को समाज स्वीकृति नहीं देता और ये बेचारे एक तो ज़िन्दगी भर अधूरे रहते हैं और ज़िन्दगी भर दुःख तकलीफ़ओ से गुजरती रहती हैं, या फिर दोनों पुरे भी होते हैं। ऐसे में एक तो फिर से इन्हे जनम लेना पड़ता हैं और अपने कर्मो को काटना पड़ता हैं तब शायद ये मिल पातें हैं। यहाँ बतादू की मैं आत्मा मतलब एक ऊर्जा जो अनंत हैं ब्रह्मा है ब्रह्माण्ड हैं तो उसे शरीर की जरुरत पड़ती हैं तो हमारा शरीर मिट्टी (पृथ्वी), आकाश, वायु, अग्नि, जल, जो पांच तत्वों से बानी हैं। और शरीर को लिंग होता हैं आत्मा को नहीं यहाँ आत्मा को किसी लिंग से वास्ता नहीं हैं और नहीं उसने कभी भेद-भाव किया हैं। ये तो मनुष्यों ने अपने हिसाब से नीतिनियम, कायदे, परंपरा और भेद-भाव बना दिए हैं। जिसके चलते आत्मा को न जाने कितने बार जन्मा लेना पड़ता है अपने मोक्ष के लिए। आत्मा सिर्फ प्रेम, आनंद, सत्य, श्वेत, स्वतंत्रता, शांत, स्वच्छ, और निरमयी निरंकार होती हैं। कभी कभी तो हमारी जुड़वाँ आत्मा ऐसे वक़्त पे आती हैं हमारी ज़िन्दगी में जब हम शादी शुदा हो या बच्चे होते हैं या फिर दोनों के उम्र का फासला होता है, तब भी समाज ऐसे रिश्तों को स्वीकृति नहीं देता। पर इनका मिलना और एक हो पाना बहुत मुश्किल होता हैं। इनके जीवन में आये दिन बहोत संगर्ष करना पड़ता हैं अपने आपको हर परिस्थिती में खुद को समतोल बनाये रखना अपने अंदर से भी और बाहेर परिस्थितियों में भी। और ज़्यादा तर ये आत्माएं अलग अलग जाती संप्रदाय में जनम लेती है ,ऐसा क्यों ? क्योंकी ये एकता और प्रेम की परिभाषा सीखाने आती हैं और बड़ी कठिनाईयों से गुजर कर एक साथ आकर समाज में प्रेम और शांति की स्थापना करते हैं। इनके कुछ उदहारण हैं शिवशक्ति ,राधाकृष्ण, सियाराम, रोमियो - जूलिएट, लैलामजनु, हीर-राँझा , सोहनी -महिलवाल और भी न जाने कितने ऐसे जुड़वा आत्मा थे इतिहास में, और आज भी कई ऐसे जोड़ी हैं.
कुछ सामने आते हैं कुछ अपना रिश्ता छुपाकर रखते हैं। तो ये थी आज की जानकारी आशा करती हु की आपको बहोत कुछ ज्ञात हो गया हैं। अगर आपके साथ कोई ऐसे लोग हैं तो उनकी मदद करें क्योंकी ये देवदूत होते हैं मनुष्य के रूप में और ये बड़े ही उदार स्वाभाव के और समज़दार होते है। इनकी मदद करके आप भी अपने जीवन में खुद की मदद कर रहे हैं। और वो कहते है की, किसीकी जोड़ी जोड़ने में भाग लेना किसी के तोड़ने में नहीं। अगर आप इनकी सहायता करते हैं तो आपके जीवन में भी आपका प्रेम अवश्य आपको प्राप्त होगा। यह प्रेम बहोत उच्च कोटि का होता हैं, इनका प्रेम अध्यात्म से जुड़ा हुआ होता है इसलिए इनका प्रेम आध्यात्मिक होता हैं. और ऐसा प्रेम पाने के लिए महसूस करने के लिए आपका आध्यात्मिक होना अनिवार्य हैं। आध्यात्मिक के बिना ये संभव ही नहीं। तो अगली लेख में मैं आपको बताउंगी की कैसे हम जान सकते हैं की हमारी जुड़वाँ आत्मा हमसे मिल चुकी है की नहीं ? और भी बहुत कुछ इस विषय पर चर्चा करेंगे। आपको ये जानना जरुरी हैं की कुण्डलिनी जागरूक कैसे करते हैं? मूलाधार चक्र क्या हैं ? क्योंकी अगर आप अपने जुड़वाँ आत्मा से मिल चुके है तो आपको बाकि सात चक्र कैसे नियंत्रित करे आपको पता होना चाहिए। अब मैं अपने शब्दों को विराम और आपके किंमती समय को प्रणाम करते हुए आपसे फिर लौटने की स्वीकृति लेती हूँ। तब तक आप सोचिये की क्या आप अपनी जुड़वाँ आत्मा से मिल चुके हैं या नहीं ? आप सभी पर प्रभु की कृपा हो आपके घर में बरकत रहे और आपका जीवन आबाद रहें।
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