अध्यात्मिकता क्या हैं ?
आपका हृदय से बहुत बहुत स्वागत है मेरे अध्यात्मिक जगत के लेख में। सबसे पहले तो आपका धन्यवाद अपना कीमती समय निकाल कर आप इस लेख पर आयें है। आज मैं आपको अध्यात्मिकता की और ले जाने का प्रयास करूँगी इसलिए विषय तोड़ा लंबा हो सकता है पर अगर आप नये है तो आपके लिए बहोत कुछ कीमती बातें है जो आपकी ज़िंदगी बदल सकती है और आप अगर इस बात से परिचित है तो भी आपको शायद मेरा लेख अच्छा लगे। तो मैं आपका कीमती समय ज़्यादा बर्बाद न करते हुए अब हम जानते है की अध्यात्मिक जगत और भौतिक जगत में क्या अंतर है? भौतिक जगत हमने सुना है और हम जो जी रहे है शारीरिक रूप से इसे ही भौतिक जगत कहते है पर अध्यात्मिक जगत क्या है? क्या ये भी एक दुनिया होती है? क्या यहाँ भी लोग रहते है या बस मानसिक चित्र ही ख़यालों की दुनिया होती है? अध्यात्मिकता का किसी मत, धर्म, या संप्रदाय से कोई संबंध नहीं है। आप अपने अंदर से कैसे हैं, आपके भाव कैसे हैं ? आत्मसंस्कार कैसे हैं ? अध्यात्मिकता इसके बारे में है। आध्यात्मिक होने का मतलब है, भौतिकता से परे जीवन का अनुभव कर पाना। अगर आप सृष्टि के सभी प्राणियों में भी उसी परम-सत्ता के अंश को देखते हैं, जानते हैं जो आपमें है, तो आप आध्यात्मिक हैं। अगर आपको बोध है कि आपके दुख, आपके क्रोध, आपके क्लेश के लिए कोई और जिम्मेदार नहीं है, बल्कि आप खुद इनके निर्माता हैं, तो आप अध्यात्मिकता मार्ग पर है। जैसे की हम सभी जानते है की अध्यात्म का बहुत ही महत्व है, पर हम में से शायद ही कोई गिने चुने लोग है जो इस विषय पर चर्चा करते है या जानते है. अक्सर लोग इन्ही बातों को नज़र अंदाज़ कर देते है क्यूँकि लोगों को लगता है की ये एक बस कल्पना शक्ति पर आधार है और इन सब बातों को झूठा या बेकार की बात मानते है।पर ऐसा नहीं है दरअसल ये सब ग़लत है की ये एक कल्पना है।नही अध्यात्मिकता हमारे सबके अंदर होती है बस इसे थोड़ी मेहनत करनी पड़ती है जैसे की हर प्रकार से शुद्ध आचरण रखना, यहा मैं सुद्ध आचरण मतलब हमारे दिनचर्या और आदतों के बारें मे बात कर रही हूँ. जब कोई भी इंसान खुद को अगर बदलना चाहे तो सबसे पहले उसे अपनी आदतों को बदलना ज़रूरी होता है.
ये सच है की आज भी ऐसे कही सारे लोग है जो अध्यात्मिकता से जुड़े हुए है आज जैसे की सभी हालातों को मद्धे नज़र रखते हुए देखा जाए तो ये ज़रूरी है की हम अब अपने भीतर मुड़े। क्यूँकि कही न कही इंसान अपनी असली पहचान खोते जा रहा है और ये सब अपने आप से दूर मुकरने से हो रहा है. वो जो खुशियाँ बाहर ढूँढने की कोशिश कर रहा है वो बाहर है ही नहीं वो तो केवल चंद दो पल का सुख है जिनसे हम दूसरों से उमिद करते है की वो हमें समझे प्यार दे प्रोत्साहित करें पर ऐसा कोई क्यूँ करेगा? क्यूँकि जब सामने वाला ही भिखारी है तो कैसे कोई क्या देगा? यहा सोचने वाली बात है की क्या हम भिखारी है ?हा है तभी तो हम दूसरों से उमिद रखते है की वो हमारी आशा पूरी करें की कोई हमें प्यार करें रक्षा करें हमारा हर पल साथ दे. क्या हम ये सब नही चाहते की हमें ये सब कुछ मिले ?अगर मैं ग़लत हूँ तो फिर आज लोग इतने दुखी क्यों है ? परेशान क्यों है ? किसी के सामने बेबस क्यों है ? किसी बात के लिए मजबूर क्यों है ? अकेलापन उसे क्यों काटने को दौड़ती है ?क्यों कोई इंसान तन्हा अकेला नही रह सकता ? क्यों वो अपने दुखों का कारण किसी दूसरों को मानता है ? क्यों तुम में वो हौसले की कमी है ? इन सारे सवालों के अगर सही जवाब है तो फिर बताईये की फिर आपको किसी की ज़रूरत क्यों है? अगर आप दूसरों को अपनी खुशियो का अतः दुखों का कारण समझते है तो यहाँ मैं बता दू आप दरसल ग़लत है, अगर मैं ग़लत बोल रही हूँ तो ज़रा अपने मन से पूछिये की क्या आप ऐसा नहीं सोचते? जी आप सोचते है तभी तो आप दुखी है।
इंसानो की एक बहोत बुरी आदत होती है की कोई व्यक्ति अपने सुख से कम सुखी और दूसरे के दुख मे बहोत सुखी होता है. क्या ये सत्य नही है? मैं तो ऐसी नहीं पर क्या आप हो? मैं तो हर पल हर क्षण आनंद मे बिता रही हूँ पर अपने भीतर से पर क्या आप भी अपने भीतर से आनंदित है ? अगर आप है तो फिर आप दूसरों के सुख में सुखी और दुख मे दुखी हो सकते है. पर ये बात सुख और दुख की नही है, यहाँ बात आनंद की है की कैसे कोई भी मनुष्य अपने भीतर आनंद वो प्रेम वो सचिदानंद से अवगत हो? आपको बता दू जब तक आप दूसरों के बारें मे सोचते रहेंगे आप कभी आनंदित नही रह पाएँगे. क्यूँकी अगर आप किसी से सुख की उमिद रखते है तो आपका दुखी होना अवश्य है. क्यूँकि जब तक आप खुद अपना प्रेम सचिदानंद स्वरूप नही देख लेते पा नहीं लेते तब तक आप कभी किसी परिस्थिति मे शांत या समाधानी नही रह सकते.
हा यहाँ आप समय समय पर मिलने वाले भोग को भोग सकते है जैसे सुख दुख..पर क्या आपने ये गहराई से सोचा है की ये सुख दुख असल मे है क्या ?
ये दरसल एक विचार है जो आया और चला गया पर आपने क्या किया? आपने उस पर प्रतीसाद दिया इसलिए तो आप रोते है हसते है। क्या ऐसा नही करते? करते है, हम सब करते है क्यूँकि हम इंसान है। हमे भगवान ने पूर्ण भावनाओं से भरा हुआ हृदय, इंद्रियां, विवेक, और बुद्धि दी है. और जब तक हम इन सारे बातों से प्रभावित है वश में है तब तक कोई भी सच्चे प्रेम सचिदानंद स्वरूप से अवगत नही हो सकता। अगर हम सच्चे प्रेम परमात्मा सचिदानंद स्वरूप से अवगत होना चाहते है तो हमे हमारी भावनाए ,विवेक ,बुद्धि, और अपने मन, इंद्रियों को कांबू करना होगा उनकी लगाम अपने हाथों में लेनी होगी, क्यूँकि अगर आप मन के आधीन चलते है या चल रहें है तो आपका पतन निश्चित है और अगर आप इन सब पर काबू पा लेते है तो आपका और आपके आस पास लोगों का उद्धार होना निश्चित है। लोगों का उद्धार तो बाद मे आता है पहले ये तो पता कर ले की हम खुद का उद्धार कैसे करें? क्यूँकि जब तक हम भिखारी है तब तक हम लोगों को क्या दे सकते है कुछ नही दे सकते आप क्यूँकी किसी को कुछ देने के लिए भी कुछ मेहनत करनी पड़ती है। यहा मैं भौतिक नही अतः अध्यात्मिक के दृष्टि से बोल रहीहूँ। आप इस बात को ज़रा गहराई से समझे। ये कोई छोटी बात नही है ये खुद की ज़िंदगी और लोगों की ज़िंदगी बदल देनी वाली बात है आप इस पर ज़रा गौर करें,सुनो अपने हृदय की, की क्या कह रही है आपकी आत्मा? क्या वो अपने आपको जानना नही चाहती? क्या वो सच्चा प्रेम नही चाहती? क्या वो अपने परमानंद से जुड़ना नही चाहती? चाहती है तभी तो आप मजबूर है यहा मेरे इस लेख को पढ़ने के लिए वर्णा आप यहाँ इतने देर रूकते नहीं...और इसका यह भी मतलब है की आपका समय अब आ चुका है इन सब बातों को जानने का खुद के अंदर झांखने का रुबरु होने का आप इसलिए नही इतनी देर तक मेरा लेख पढ़ रहे है की क्या है ये सब? आप इसलिए पढ़ रहें है की अब आपको अपनी आत्मा एक नयी दिशा की और खींच रही है।"जो जग में रहूँ तो ऐसे रहूँ जो जल में कमल का फूल रहे ". ऐसा ही तो रहना है हमें, जीवन सुख-दुःख, कष्ट और संघर्षों से भरा हैं। मोह माया से जकड़े हैं, हम जिस तरह से जीवन में न जाने कितने कीचड़ हैं फिर भी हमें भीतर बहार से संतुलन होना हैं जिस तरह से कीचड़ में कमल खिलता हैं तो हमारा ध्यान भी सिर्फ सुन्दर कमल की और ही आकर्षित होता हैं। उसी प्रकार से जीवन कितना भी कीचड़ हो आपको उस कमल पुष्प के भाती अपना व्यक्तित्व सुन्दर और आकर्षित रखना हैं भीतर और बहार से और अगर संतुलन होना हैं तो अध्यात्म के सिवाय ये संभव हैं ही नहीं।
सोचिए,क्या ये सत्य नही है?
मैं आपको अध्यात्मिकता से जोड़ने के लिए यहा आई हूँ, ये मेरी आपके लिए एक छोटीसी कोशिश है आपको खुद से अवगत करवाने की। मैं यहाँ आपको वो सारा कुछ अनमोल और सच्चा ज्ञान बताऊंगी जो अध्यात्मिकता से जुड़ी है। आज ये सिर्फ़ आपको आपके अंदर की और अग्रसर करने के लिए बोला है की आप इस विषय मे सोचे ज़रा गहराई से सोचे की कैसे हम अपने भीतर प्रेम और आनंद पा सकते है? मैं भी आप ही की तरह एक मामूली सी लड़की थी पर अब मेरे कदम अध्यात्मिकता के और बढ़ चुके है मेरे विचारों मे एक अजीब सी हलचल मच चुकी है अजीब सा आनंद और प्रेम भर चुका है। इतना आनंद, शांति, सुकून, और समाधान है इस पथ पर की आपसे बयान करना मुश्किल है। ये तो उसी प्रकार से है की अगर प्लास्टिक मे लिपटे हुए गुलाब जामुन खाओगे तो स्वाद कैसे पता चलेगा? उसे खाने के लिए तो आपको उस प्लास्टिक को खोलना होगा तभी तो आप उस गुलाब जामुन का स्वाद आनंद से उठा सकते हो..ठीक उसी तरह आपको भी अपने मन की परतों को खोलना होगा जुड़ना होगा अपने आपसे बाहर की दुनिया से थोड़ा दूर एकांत मे बैठकर खुद की आवाज़ को सुनना होगा..और ये प्रक्रिया 1 दिन की नही है पर 1 दिन ज़रूर पूरी होती है. उसके लिए सैय्यम और श्रद्धा की ज़रूरत है। अपने आप मे एक अच्छा बदल करने के लिए अगर मैंने ये किया है तो आपके लिए भी कठिन नही है, बस इसके लिए मन मे निश्चय कर लेना होता है..और आगे क्या करते है ये सब मे अगली लेख मे आपको बताऊंगी. मेरे गुरुदेव से मेरे अनुभव और आत्मा ज्ञान से जो भी मूझे कुछ ज्ञान हासिल हुआ वो मैं आप सबको एक-एक करके हर एक लेख में सब बताऊंगी। क्योंकि ये बहुत ज़रूरी है, अगर मेरे इस ज्ञान और बातों से किसी का भला होता है तो मैं अपने आपको सौभाग्यशालि समझूंगी, क्यूँकी अपने आप मे एक बदल घटित हो रहा है अगर मेरे लेख पढ़ के आपको और अपने बारें मे जानने की उत्सुकता है तो मैं आपकी मदद करने के लिए आपके साथ हूँ आप मुझसे जुड़े रहें तब तक के लिए मैं अपने शब्दों को विराम और आपकी कीमती समय को प्रणाम करते हुए अब यही बीदा लेना चाहती हूँ तब तक आप इस विषय पर सोचियेगा ज़रूर। मिलती हूँ आप सभी को अगले लेख में आप सभी अपना ख़याल रखे और आनंद मे रहिए। आप सभी पर प्रभु की कृपा हो आपके घर में बरकत रहें और आपका जीवन आबाद रहें।
🙏🏻Har Har Mahadev🙏🏻
जवाब देंहटाएंBhot khub di app bhot bdhiya kaam kar rhi hai aisa hi karte rahiye🙏🙏👌👌💖💖
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जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया, वास्तव में अध्यात्मिकता ही हैं जो सत्य हैं और हमारे अन्दर जो सनातन आत्मा हैं उसका पोषक हैं, परन्तु हम भौतिक वस्तुओ के पीछे ऐसा(मूर्खो की भांति) भागते रहते हैं जबकि हमें पता हैं वो सदा रहने वाली नहीं हैं
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