10 अक्तूबर, 2020

अध्यात्म परिचय और अखंड आनंद क्या हैं ?

अध्यात्म परिचय में दो शब्द,

        आपका बहुत बहुत स्वागत है मेरे इस अध्यात्मिक जगत के लेख मे। सबसे पहले तो आपका धन्यवाद की आप अपना इतना कीमती समय मेरे इस लेख पर व्यतीत कर रहे है। तो, हमने पिछले विषय  मे थोड़ा सा अपने बारे मे जानने की कोशिश की हमारे भौतिक और आंतरिक जगत के बारे मे। आज भी मैं आपको थोड़ा सा विस्तार से समझाने का प्रयास करूँगी की आख़िर क्यूँ इतना महत्व है इस विषय पे जानकारी लेना? जैसे की मैने कहा की हमें जानना इसलिए ज़रूरी है क्यूँकी हम सत्य प्रेम  पाना चाहते है, आनंद  पाना चाहते है, लक्ष्य  पाना चाहते है, मोक्ष  पाना चाहते है और सबसे महत्वं बात की, हम अपने आपको जानना चाहते है की अक्सर ये दुनिया चलती कैसी है ? आख़िर कौन है जो इस दुनिया को चला रहा है ? आख़िर इस शरीर के अलावा इस दुनिया में और भी कुछ है पर क्यूँ है ? हमारे अंदर जो आवाज़ है वो क्या है ? परमानंद  प्रेम  क्या है? इन सारे सवालों के जवाब लेकर आज मैं फिर आपके सामने प्रस्तुत हूँ.

अध्यात्म परिचय और अखंड आनंद क्या हैं ?

जीवन  का  ताप्तर्य 

     वह सब कुछ करना जो हमारे हाथ मे नही है ,वह सब कुछ हस्तगत करना जो अखंड है, आनंद को देने मे सहायक है। 
    यहाँ मैं 'अखंड आनंद'  शब्द का प्रयोग कर रही हूँ। 'अखंड आनंद'  मतलब जो कभी ख़तम ना हो । सुख जो आज है, कल समप्त हो सकता है और होता ही है। क्या हम छोटी छोटी खुशियाँ पाने के लिए दुखों का पहाड़ नही झेलते? क्या सुख के चाह मे हम अपने आपको घिस नही देते? पर क्या तब भी हमें सुख प्राप्त होता है? होता है पर कुछ क्षण के लिए, पर ऐसा सुख किस काम का जो हमें इतने दुख सहने को मज़बूर करे? जो चंद दो पल का सुख भोगने के लिए हमें क्या-क्या दुख भोगने पड़ते है। फिर हम में और पशु मे क्या अंतर रह जाता है? पशु भी अपना जीवन जीने के लिए ख़ाता है पीता है संभोग करता है बच्चे निर्माण करता है सोता है और अंत मे वो मर जाता है। क्या हमारा जीवन भी हम इसी तरह से नही कांट रहें है? हम भी तो दूसरों को खुश करने के लिए मरते है मिटते है सुबह उठकर काम पर जातें है धन कमाते है, और अंत मे हम भी इन भौतिक सुख के चक्कर मे न जाने कितने किंमती पल और समय गावा देते है। आज शरीर स्वस्थ है, कल बीमार हो सकता है। आज पैसा है कल नही रहेगा। यह तो टुकड़ों में जीवन जीने की एक प्रक्रिया हुई, अखंड आनंद  जीवन नही हुआ।अखंड  जीवन तो केवल आनंद के मध्यम से ही प्राप्त हो सकता है; और आनंद का तप्तर्य है, जहाँ किसी प्रकार का क्रोध, द्वेष, छल, कपट, झूठ, व्यभिचार, दुख, चिंताए, परेशानिया, बाधाए और असत्य नही हो। नही हो ,यह बहुत बड़ी बात है, ऐसा संभव नही है क्यूँकी मानव जीवन इतना जटिल और दुविधा भरा हो गया है , इतना कठिन और परिश्रम पूर्ण बन गया है की पगपग पर कई बाधाओं और परेशानियों का सामना करना पड़ता है। फिर भी आदमी उस आग से गुज़र कर जो भी कुछ प्राप्त कर पता है वो बहुत छोटी सी बात होती है। धन दौलत, पति-पत्नी, बच्चे, संपत्ति, ये तो नश्वर है नश्वर इसलिए क्यूँकी ये आप है तब तक है, यदि आप नही है तो इनका कोई भी अस्तित्व नहीं है। आपके मरने के बाद आपके शरीर से एक मुट्ठी भर राख के अलावा कुछ मिलेगा भी नहीं। आपने अपने पूर्वजो को ना कुछ दे पायें और ना आने वाली पीढ़ियों को कुछ दे पाएँगे। सोचिए कितनी बड़ी बात है ये।  
    आपके पास कुछ रहेगा नही क्यूंकी, आप जो कुछ भी अर्जित कर रहें है वो तो क्षण भंगूर है, इसलिए है क्यूँकी जब तक आप है तब तक ये सारी चीज़े है और आपसे पहले भी यहीं थी और हमेशा रहेगी। यदि, आप समाप्त हो जाते है तो वह स्वतः ही आपके लिए समाप्त हो जाते है। 
  यह आपके जीवन का लक्ष्य नहीं है, और आपके जीवन का भाग भी नहीं हैं ... इसलिए इसको आनंद नही कहाँ जा सकता, इसलिए इसको 'अखंड आनंद'' नही कहां जा सकता। और मैने 'अखंड आनंद ' शब्द का प्रयोग किया था. 'अखंड आनंद' का मतलब है एक ऐसा आनंद जो संसार के प्रत्येक व्यक्ति के लिए एक समान उपयोगी और अनुकूल हो। सुख तो केवल दो पल का है और अलग अलग व्यक्ति के सोच पर निर्भर करता है, कुछ लोग धन अर्जित करने मे सुख अनुभव करते है, कुछ अपने स्वस्थ को लेकर ,या किसी भी भौतिक चीज़ों मे वो अपना सुख ढूंढता है और संभोग विलास मे लिपटा रहना इसको सुख समज़कर सुख अनुभव करता है। सुख तो प्रत्येक व्यक्ति का अलग अलग होता है, लेकिन आनंद  तो संसार मे प्रत्येक प्राणी का एक जैसा ही होता है। हर इंसान इस आनंद को प्राप्त करने के लिए ना जाने किन किन चीज़ों मे अपने आपको तलाशता है पर यह सत्य नही है। इस आनंद  को अनुभव करने के लिए तो केवल भीतर ही उतरना पड़ता है। अपने आप से या फिर किसी गुरु के माध्यम से। पर यहाँ सबसे पहले अनिवार्य यह होता है की वो अपने आपको इन बाहरी वस्तुओं से अलग करें। मतलब की जो वो समय कही खाली व्यर्थ कर रहा है जैसे की टीवी देखना, फोन पे बातें करना, अनावश्यक समय सोने मे गुजारना या फिर दूसरों की बातों मे ध्यान लगाने से अच्छा है की वो अपने आपको इन सारी व्यर्थ बतों से दूर करे। और अपने आपको एकांत मे बिठाकर ज़रा अपने अंदर झांखने का प्रयास करे। अपने हृदय की सुने अपनी अंतर चेतना की सुने। की क्या वो इन सब से आनंद प्राप्त कर रहा है या फिर अपना समय बस व्यर्थ गवां रहा है? हमारी यही विडंबना है की हम कभी अकेले रहने का प्रयास ही नही करते इसलिए नही करते क्यूँकी हमें किसीने कभी सिखाया ही नही। हमने उच्च शिक्षा तो प्राप्त कर ली पर हम अंदर से कोरे के कोरे ही रह गये है। हम अपनी भौतिक जगत मे इतना खो चुके है की हमें कभी अपने सच्चे आनंद के बारे मे सोचना भी ज़रूरी नही समझा। कैसे समझेगा कोई? अगर किसी ने यह बात प्राप्त कर ली होती तो शायद आज हम इतने दुखी ना होते और ना ही हम किसी को दुःख पोचते। 
 हम जैसे इस दुनिया मे आते हैं वैसे ही इस दुनिया से चले जाते हैं .  
                                      
अध्यात्म परिचय और अखंड आनंद क्या हैं ?

जीवन का लक्ष्य

 सोचिए ज़रा इस प्रश्न पर क्या हम जैसे आयें है वैसे ही मर नही जाते? अगर यही जीवन है ऐसा आप सोचते है तो फिर हम में और पशुं मे क्या भेद है? क्यूँ भगवान ने सिर्फ़ हमें इतनी विद्ध्या दी है? इतना विवेक क्यूँ दिया है? क्या यहीं सब छोटे छोटे लक्ष्य पाने के लिए ? नही हम अपने आपको जानने के लिए इस धरा पर आयें है, हमारे कर्म काटने और कटाने आयें है, हम मोक्ष प्राप्त करने के लिए आयें है. जो जन्म-जन्मान्तर से हम जो कुछ भी भोगते आ रहे है उन सबको रोक लगाने के लिए आयें है यहां हम किसी से कुछ लेने के लिए नहीं अपितु देने के लिए पृथ्वी पर आयें है। फिर आप पूछेंगे की अगर हमें यही सब करना था तो फिर हमे भगवान ने जन्म क्यूँ दिया? इतनी सारे भौतिक सुख क्यूँ दिए?... पहली बात भगवान ने हमें इसलिए जन्म दिया क्यूँकी वो अपने आपको देखना चाहता था और अपनी ही खुद की परीक्षा से खुद को परखना चाहता था। इसलिए हम कहते है की हम भगवान का अंश है। और भौतिक सुख इसलिए प्राप्त करा दिया ताकि वो जितनी भी देर तक पृथ्वी पर रहे तो अपने आपको बस जानने कि कोशिश करे इन वस्तुओं के माध्यम से। उसकी जितनी ज़रूरत हो वो उतनी ही उसे ईस्तमाल करे। पर इंसानो ने इन सारी चीज़ों से मोह बाँध लिया। और वो इन्ही में उलझकर रह गया हैं। और भगवान हमारी राह देख रहा हैं की कब उसका अंश उसके पास आएगा कब उसमे समाएगा।पर इंसान कभी समझ ही नही पाया की उसका मूल कार्य तो मोक्ष प्राप्त करना है ना की इन चीज़ों मे उलझाना.

अध्यात्म परिचय और अखंड आनंद क्या हैं ?

मोह माया का जाल 

भगवान ने मोह माया की जिंदगी और असल ज़िंदगी बनाई है पर हम मोह माया को ही असल जिंदगी मानते है पर सच कहूं तो हम एक स्वप्न मे जी रहें है वो भी भगवान विष्णु जी के हिन्दू शास्त्र के अनुसार। सत्य तो मृत्यु है और हम उसी से डरते है। असली जीवन तो मृत्यु के बाद शुरू होती है और हम इसी बात से अंजान है डरते है मृत्यु से। पर क्यूँ डरते है? क्यूँकी किसी किसी की मृत्यु भयानक होती है इसलिए ? और उस दर्द से हम कभी मृत्यु के विषय पर विस्तार से सोचते नही। क्यूँकि हम जिन्हे अपना समझते हैं उनसे हमारा मोह बंध गया होता हैं और हम उन्हें खोना नहीं चाहते बस यही डर होता हैं वर्णा डर क्यों हैं? कितने ही ऐसे लोग है जो कहते है की हम मृत्यु से नही डरते फिर जब मृत्यु सामने आती है तो क्यूँ डर जाते है? दरअसल वो अपने आपको दिलासा देना चाहते है पर मृत्यु के पार भी एक दुनिया है जिसे अध्यात्म कहते है। जिस किसीने भी इस क्षेत्र मे कदम रख लिया तो समझो उसका बेड़ा पार हो गया। यही तो खेल - खेल है और असली परीक्षा है की हम मोह माया में फँस कर जीवन मृत्यु के चक्कर काटते रहें या इन सब बाधाओं को पार कर के मोक्ष को प्राप्त करें? यह तो अपनी सोच पर निर्भर है। पर ये इतना आसान नही है की हम मोक्ष तक पहूंचें क्यूँकि मोक्ष प्राप्त करने के लिए हमें मोह माया को त्यागना पड़ता है और माया हमें कभी उसके चंगुल से छुटने नही देती। वो किसी न किसी रूप मे हमे अटका के रखती है जैसे की, पति-पत्नी, बच्चे, माता- पिता, भाई- बहन, रिश्तेदार, धन संपत्ति, सुख, मनोरंजन और इत्त्यादि। हमें फांसने के लिए वो हर प्रयास करती है पर कितने ही ऐसे है जो यही उलझ कर रह जाते है, और मोक्ष प्राप्त नही कर पाते। फिर हम इन सबसे कैसे छूटकारा पा सकते है? यह तो केवल ध्यान, ज्ञान, योग, कर्मा ,सेवा, भक्ति  के मध्यम से ही संभव है  और फिर कैसे कौन होगा इतना पारंगत की हमे सच्चे ज्ञान से अवगत कराए, हमें सही मायने में अपने आपका होना क्या है इस विषय पर प्रकाश डाले? की कैसे हम इस अंधकार से बाहर निकले और कौन निकाले? तो यह केवल और केवल गुरु के मध्यम से ही संभव है। उनका ध्यान, ज्ञान, सेवा और भक्ति के मध्यम से ही संभव है। और यह कैसे करें वो मैं आपको पूर्ण विस्तार से अगले लेख मे बाताऊंगी ..आपके सारे सवालोंके जवाब लेकर मे आऊंगी आपकी तृष्णा को शांत करूँगी, तब तक आप बस अपने आपमें ये सोचिए की क्या हम जो जीवन जी रहे है क्या वो सत्य है ? क्या वो हमे आनंद दे रहा है? या नही? अगर मेरे सवालों से आपके मन में भी प्रश्न उठ रहे है तो यह आपके लिए बहुत अच्छा है इसका यह अर्थ है की आप जाग रहे है। ज़रा गौर से सोचिएगा इन बातों पर तब तक मैं आपसे अब अज्ञा लेती हूँ और अपने शब्दों को यही विराम देती हूं आपके समय को प्रणाम करते हुए आपसे वादा करती हूं की बहुत जल्द मैं आपके जिज्ञासा को शांत करूँगी. तब तक आप अपना ख़याल रखे और ध्यान करिए. फिर मिलते है अगले लेख में।आप सभी पर प्रभु की कृपा हो आपके घर में बरकत रहें और आपका जीवन आबाद रहे। 

                       🙏जय गुरुदेव, हर-हर महादेव 🙏          

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