आपका बहोत बहोत स्वागत हैं आध्यात्मिक जगत के ज्ञान भरे लेख मे और आपका ह्रदय से धन्यवाद् करती हूँ की आप अपना कीमती समय निकल कर यहाँ आये। आप यहाँ अपने विचार व्यक्त करने के लिए सहेज मेहसूस कर सकते हैं। आज हम स्वाधिष्ठान चक्र जो की कुण्डलिनी षट्चक्र में से निचे से २ स्थान का चक्र हैं। पिछले विषय में मैंने आपको कुण्डलिनी षट्चक्र के बारें में समझाया था की ये मानव जीवन या किसी भी जिव में इनका क्या महत्व हैं। मैंने बहुत कम शब्दों में आपको समझाया था की आपको उस से थोड़ा ज्ञात हो की आगे हम इसी पर बात करेंगे इसलिए। आज हम इस चक्र को विस्तार से ज्ञात करने का प्रयत्न करेंगे।
स्वाधिष्ठान चक्र
- इस चक्र का स्थान लिंगस्थान के सामने हैं, और यह चक्र रीढ़ में होता हैं।
- इसके कमल के पंखुड़ियाँ ६ वर्ग में हैं।
- वर्ग में बँ, भँ, मँ, यँ, रँ, लँ बीज मंत्र हैं।
- यह अर्धचंद्र के आकर में हैं और चन्द्रशुभ्रा वर्ण यन्त्र हैं इस चक्र का रंग सिंदूर वर्ण (नारंगी) हैं।
- चक्र का बीज मंत्र ' वँ ' हैं और वाहन मकर हैं।
- चक्र में देव तथा देव शक्ति देव विष्णु देवता और राकिनी जो की लक्ष्मि देवी ही हैं उन्ही का निवास हैं।
- यह जल तत्त्व चक्र हैं।
- यह इच्छाशक्ति, भावनाएँ, मैथुन क्रिया, और कला से सम्बंधित होता हैं।
- वाहन मकर पर वरुण देव का निवास हैं।
" स्व " - स्वयं और " अधिष्ठान " - नितंब निवास यह हमारे जल तत्त्व से सम्बंधित होता हैं और जल तत्त्व हमारे भावनाओं से। जो हमारे अंदर ग़ुस्सा, बेचैनी, डर, पश्चाताप होते हैं वे इसी चक्र से आतें हैं। पूर्व के जो युग थे उनमें बहुत संख्या में लोगों का यह चक्र खुला रहता था जिससे की आदि के लोगों की भावनाएं और इच्छाएं मैथुन और कला का सही प्रयोग करते थे। परंतू अभी के समय में अर्थात कलियुग में यह चक्र की शक्ति मूलाधार में हैं क्योंकि मानव जीवन बदल चूका हैं। अभी मानव स्वार्थ और भौतिक जीवन जी रहा हैं और उसी मे ही अपना सुख और सौभाग्य खोज रहा हैं।स्वयं से दूर होकर अपने अस्तित्व अपने प्रभु से दूर होकर जीवन जी रहा हैं मोह माया में फसा हैं जो की काल्पनिक जग हैं उसीको सच मानकर जी रहा हैं। वो यह भूल जाता हैं की एक दिन म्रुत्यु सबको आणि हैं और यह सब यही रह जाना हैं और जाएगी तो सिर्फ उसकी भावनाएं उसके करम ही। इसी कारण से ही हर जगह कोई भी व्यक्ति भावनात्मक रुप से सुखी सम्पन्न और शांत नहीं दिखाई देगा। मूलाधार चक्र में हमारे संचित कर्मा भरे रहते हैं और स्वाधिस्ठान चक्र में हमारी भावनाएं इसी से हमें ऊपर उठना होता हैं। मूलाधार और स्वाधिस्ठान चक्र का हमारे अचेतन मन से जुड़ा हुआ रहता हैं यही वे चक्र हैं जिनसे हमारी कमज़ोरियाँ और शक्तियां प्रदर्शित होती हैं। जब कर्मा ऊपर की और उठते हैं तो यही सही संधि होती हैं की हम इन चक्रों को साफ़ करें। अपने आचरण, आहार विहार, मैथुन, भय, योग, ध्यान, साधना, तप, जाप, सेवा इत्यादि से हम अपने इस चक्रों को सुधार कर फिर जीवन के सही मायने में हर भावना को उतने ही शुद्ध भाव से जीवन का आनंद उठा पाएंगे। इसी चक्र में हमारे पश्चाताप की भावना भी होती हैं अगर जीवन में कोई गलत कार्य किया होगा तो उसका पश्चाताप हमेशा आपको सताएगा तो आपको वो पश्चाताप पूरा करना होगा अपने उस भूल को फिर से न दोहराकर। अगर हमने इस चक्र को साफ़ कर दिया तो हम हमारी भावनाओं को वश में कर सकते हैं और खुद में बदलाव देख सकते हैं। स्वाधिस्ठान चक्र का सीधा सम्बन्ध हमारे मन से होता हैं चेतन, अवचेतन और अचेतन मन से। हमारी जागने और सोने की जो अवस्था होती हैं वो चेतन और अवचेतन मन से होती हैं। जब हम सो रहे होते हैं तो ये तब भी काम करती हैं और जब हम जाग अवस्था में होते हैं तब हमें ज्ञात होता हैं की क्या सही भावना हैं और क्या गलत पर कुछ बातें जो हमारे अचेतन मन से आती हैं जिसे हम एक दृश्य कहते हैं वे हमें सबसे ज़्यादा विचलित करते हैं कोई भी निर्णय लेने में हमें ज्ञात तो होता हैं भीतर से परंतू हम समझ नहीं पातें और यही से जीवन के कुछ महत्व पूर्ण निर्णय लेने में असमर्थ होते हैं। हम चूक जातें हैं।
स्वाधिष्ठान चक्र में देव विष्णु और राकिनी देवी हैं जो की महालक्ष्मी ही हैं और इनका मुख्य कार्य संसार का पालन करना और सुखी सम्पन्न संसार करवाने के लिए होता हैं। पति पत्नी के बीच जो प्रेम सम्बन्ध होता हैं वे यही देव देवी सँभालते हैं। इसलिए बहुत से लोग अपने संसारी जीवन संभाल नहीं पातें क्योंकि भावनाओं को समझना और संभालना हर किसी के बस की बात नहीं होती। विष्णु देव जो आकर्षण और पालनहार के देवता हैं और महालक्ष्मी जो धन समृद्धि ऐश्वर्या और एकनिष्ठा प्रेम की देवी हैं। और हम जब भी किसी जोड़े को देखते हैं तो हम यही कहते हैं की लक्ष्मीनारायण की जैसे जोड़ी बने रहे। हमारी इस चक्र में २ मुख्य ऐसे शक्ति है जिन्हे हम "इच्छा शक्ति "और "क्रिया शक्ति " कहते हैं। इनमें भी तीन शक्तियां महत्व होती हैं जिसे हम
प्राण शक्ति - जो हमारे शरीर को जीवित रखती हैं।
धारना शक्ति - जो हम बातें भावनाएं, आचरण धारण करते हैं।
चेतना शक्ति -जो हमारे चेतन, अवचेतन, और अचेतन मन को विकसित रखती हैं।
अगर इन शक्तियों का हम सही प्रयोग करें जैसे की हमारे आचरण को शुद्ध रखना , भगवान के प्रति, गुरु के प्रति, ब्रह्माण्ड के प्रति, प्रकृति के प्रति निस्वार्थ सेवा भाव रखना, सही समय पर सही और एक ही जोड़ीदार से सम्भोग करना, उनके प्रति समर्पित रहना, उन्हें प्रेम करना, ज्ञान से ध्यान से चेतना को विकसित करना, योग और प्राणायाम से शरीर को संतुलन रखना और भय और अन्य भावनाओं को संतुलन रखना। इन सारे बातों को ध्यान में रखते हुए हम यदि ऐसा जीवन अपना ले तो हमारे संचित कर्मों का असर भी हमारे ऊपर कम रहता हैं। और हमें उतनी पीड़ाएँ भी नहीं सहनी पड़ती। यदि इन बातों को हम संतुलन रखते हैं तो सुख हो या दुःख हम कभी विचलित नहीं होते और ना ही हम कभी गलत निर्णय ले पाएंगे। पर यदि आप शराब मदिरापान, धूम्रपान, नशा, गलत समय में गलत व्यक्तियों से या बहुत लोगों से सम्भोग करते रहेंगे या करने से ये चक्र आपका बंद हो जाता हैं, और आप पहले के कर्मा को इस जनम के कर्मा से जोड़ देते हैं। अनजाने में तो और भी पीड़ाएँ जीवन में उठाना पड़ता हैं। जवानी में चाहे आप कितने भी गलतियां या चेस्टा करले पर आपके कर्मों का फल कभी आपसे नस्ट नहीं होगा। वो समय पर ही आता हैं। आपका कर्मा कभी आपको चैन से नहीं जीने देगा और नाही आपकी आत्मा शांत बैठने देगी यदि आपने गलत बातें की हैं तो। और अगर की भी हैं तो प्रयत्न करें की आप ऐसी गलतियां अपने जीवन में फिर न करें खुद की ज़िम्मेदारी स्वयं उठाइएं और अपने जीवन में कुछ अच्छे कार्य करके आपने जीवन को शांत और सुखी बनाने का प्रयास करते रहिये। और इतना ही कहूँगी की विचार क्षण भर के होते हैं वे कभी थमते नहीं ना ही समय किसी के लिए रुकता हैं पर उन विचारों में खुद का आपा मत गवायें जिससे की आपको बाद में पछताना पड़े । शांत रहे और सोच विचार करके ही कोई सही निर्णय ले। आपका जीवन सुखी रहेगा। जीवन को अच्छा रखने के लिए कुछ कठिन नियम भी बनाने पड़ते हैं तो बनाये। होती हैं पीड़ा शुरुवात में पर इसकी आपको धीरे धीरे आदत लग जाएगी। अच्छे जीवन के लिए निरंतर गुरुसेवा या देव भक्ति करना अनिवार्य हैं। और आपके करम कटाने के क्षमता सिर्फ योग्य गुरु में ही होती हैं। इसलिए गुरु के शरण में ही रहे वे हमेशा आपको सही मार्ग पर ही रखेंगे। स्वाधिस्ठान चक्र के बारे में जितना कहूँ उतना कम हैं, पर समय का भी भान रखना पड़ता हैं। तो आज के इस विषय में बस इतना ही आपने यदि मूलाधार के बारें में पढ़ा नहीं हैं तो अवश्य पढियेगा। अब मैं आपके कीमती समय को प्रणाम और अपने वाणी को यही विराम देते हुए आपसे विदा लेना चाहती हूँ। फिर इसी विषय में आगे और समझाने का प्रयास करुँगी। और आगे भी इस लेख को भेज दीजियेगा। क्या पता आपकी एक छोटीसे प्रयास से किसकी सहायता हो जाएं ? तो प्रभु आप सभी पर अपनी कृपा आशीर्वाद और प्रेम बरसायें आपके घर में बरकत रहे और आपका जीवन आबाद रहे।
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