शुरुवात ध्यान से
आपका बहुत बहुत स्वागत है मेरे अध्यात्मिक जगत के लेख पर. सबसे पहले आपका हृदय से धन्यवाद करती हूँ कि आज आप मेरे लेख पर अपना किंमती समय निकाल कर आए. मुझे विश्वास हैं की आप सब कुशल मंगल होंगे। आशा करती हूँ की मैं आपकी जिज्ञासा को शांत कर रही हूँ अपने महत्व पूर्ण ज्ञान से. तो आज हम ध्यान क्या है और क्यूँ करना चाहिए ? ये सब बातें इस लेख मे जानेंने .
ध्यान क्या है?
ध्यान एक प्रक्रिया है किसी भी वस्तु पर अपनी समस्त शक्तियों को केंद्रित करने की या फिर निरीक्षण करने की। पर ऐसा नहीं हैं ध्यान का अर्थ एकाग्रता भी नहीं हैं। ध्यान का सही अर्थ हैं भीतर से जागरूक होना जागरूकता ,अवेर्नेस ,साक्षी भाव ,दृश्टा भाव या पूर्ण होश में आना सही गलत की समझ होना और शुन्य अवस्था में रहना । जैसे की ध्यान लगाने के भी बहुत क्रियायें व्यक्तिगत रूप से होती है। कोई किसी वस्तु पर ध्यान केंद्र करता है, कोई बातों पर केंद्र करता है, कोई किसी भी काम पर केंद्र करता है अतः इस प्रक्रिया को ही हम ध्यान कहते है ऐसा भी कह सकते हैं मतलब की जागरूकता ,यह भीतर से जागरूकता के बिना असंभव हैं। पर ये सब अपने अपने विचार और सुविधा पूर्ण है। अगर हम कुछ बड़ा कार्य और खुद में संतुलन पाना चाहते है तो सबसे पहले हमें अपने आप पर ध्यान लगाना होगा। जैसे की मैने पहले भी लेख में 'अखंड आनंद ' शब्द् का प्रयोग किया था, और हमें आनंद को समझने के लिए उसे पाने के लिए खुदके भीतर ही उतरना पड़ता है। क्यूँकि आनंद केवल और केवल भीतर ही प्राप्त होता है, तभी हम बाहर चीज़ों से परिस्थितियों से विचलित नही होते, क्यूँकि हम भीतर से पूर्ण संतुलित हो गये होते है। अगर हमें और बेहतर बनना है तो हमें अपने आपको पहले भीतर से संतुलित होना अनिवार्य है। इसके लिए हमें कोई ऐसा बड़ा काम नही करना पड़ता है। बस किसी एकांत मे बैठने की तैय्यारी होनी चाहिए। ध्यान में इन्द्रियाँ मन के साथ ,मन - बुद्धि के साथ और बुद्धि अपने स्वरुप आत्मा में लीन होने लगती हैं एक बार व्यक्ति अपने ध्यान में खो गया तो उसे बाहर के किसी भी बातों का असर नहीं पड़ता न दूसरों के भावो का कल्पनाओं का आशाओं का कैसी भी परिस्तिथि हो चाहे वो दुःख हो या सुख कोई असर नहीं पड़ता बल्कि उसकी सोच और भी गहरी हो जाती हैं उतना ही वो साक्षी भाव में रहने लगता हैं। ओशो कहते हैं की 'भीतर से जाग जाना ही ध्यान हैं। सदा निर्विचार की दशा में रहना ही ध्यान हैं।' सबसे पहले आप ध्यान करने से पहले ये सुनिश्चित करले की आप असल मे ध्यान क्यूँ करना चाहते है? क्यूँ की विषय थोड़ा गंभीर भी है और नही भी। गंभीर इसलिए, क्यूँकि ध्यान एक प्रक्रिया है खुद के भीतर बदलाव की और ये बदलाव कोई साधारण नही होता है, इस से समस्त भीतर के विचार और भीतर का विश्व बदल जाता है। मतलब विचार बदल जातें हैं। ध्यान करने वाला व्यक्ति कभी साधारण नही रह पता। एक बार उसे इसकी आदत हो गयी तो वो स्वयं ही अपने आप ध्यान मे सरल से बैठ पता है। ध्यान की क्रिया किसी भी साधारण व्यक्ति को महामानव बनाने की क्षमता रखती है। और गंभीर इसलिए भी नही क्यूँकि इसमे ख़तरे की कोई बात ही नही होती। ख़तरे की भावना के बारे में तो बस हमारा दिमाग़ सोचता रहता है, इसमे कोई ख़तरे की बात है भी नही। यह प्रयोग हम कुण्डलिनी शक्ति जागरूक करने के लिए भी कर सकते हैं। ध्यान के कितने फायदे है ये मैं आपको अगले लेख मे बतौँगी.
ध्यान के बारे में जितना कहे उतना कम हैं इसलिए इसे स्वयम ही जान लेना आवश्यक हैं। ध्यान एक गहराई हैं जहा चलते ही जाना हैं अपने भीतर और भीतर ये एक ब्लैकहोल काले सुरंग की तरह हैं पर जब कोई व्यक्ति ध्यान से बाहर आता हैं तो वो पहले जैसा नहीं रहता उसकी चेतना अब पहले से विकसित हो चुकी होती हैं आत्मा साक्षात्कार हुआ होता हैं ब्रह्मा ज्ञान प्राप्त होता हैं और एक अजीब सी शांति और आनंद का अनुभव करता हैं चाहे परिस्तिथि कैसी भी हो उस पर आम लोगों की तरह सुख दुःख का कोई असर नहीं होता अर्थात वो एक मानव से महामानव बन जाता है। सोचने समझने की क्षमता कही गुना ज्यादा बढ़ जाती हैं एक स्पष्टता आती हैं और व्यक्ति बड़े बड़े निर्णय बड़े सहजता से लेता हैं, और उसमे एक अजीब सी अचंबित करने वाली क्षमता आती है। आशा है की मैंने आपको पूर्ण जानकारी दी और आपको पता चल गया की ध्यान क्या है ? अब मैं अगले लेख मे ये बताने की कोशिश करूँगी की ध्यान के फायदे कितने होते है? जिससे आप भी निश्चय कर सके की आपको भी ध्यान करना है। विश्वास रखिए आपका जीवन आनंद से भर जाएगा। अगर आपको मेरी लेख अच्छी लगी हो तो आप मेरे साथ जुड़े रहिए मैं आपको बहुत महत्व पूर्ण ज्ञान से परिचित करवाऊंगी। आपका जीवन आनंद मय रहे इसके लिए मैं आपको हमेशा सहयता करूँगी. तो आनंदित रहिए स्वस्थ रहिए तब तक ध्यान करने की कोशिश करिए। अब मैं अपने वाणी को विराम और आपके किंमती समय को प्रणाम करते हुए आपसे फिरसे मिलने की ईच्छा रखती हूँ। मिलते है अगली लेख पर तब तक आप अपना और अपनो का ख़याल रखे आनंदित रहिए। आप सभी पर प्रभु की कृपा हो आपके घर में बरकत रहें और आपका जीवन आबाद रहें।
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