आपका बहुत बहुत स्वागत हैं आपके अपने ब्लॉग पर। सबसे पहले तो आप सभी से क्षमा प्रार्थी हूँ की बडी लंबी प्रतिक्षा करवाई आपको और बड़े लम्बे समय बाद मेरा लेख आपको मिला हैं। मेरी भी कुछ समस्याएँ थी जिस कारण आप सबको मैं लेख नहीं दे पाई। आपका निश्चल प्रेम और अटूट विश्वास जो आपने मुझपे बनाये रखा इसके लिए मैं ह्रिदय से आभार प्रकट करती हूँ। आप सब का बहुत बहुत धन्यवाद। अब आपका ज़्यादा समय न लेते हुए मैं आपको आज की लेख की और ले चलती हूँ। आज की लेख जुड़वाँ आत्मा की दिव्य स्त्री पर हैं। जिन्हे हम ट्विनफ्लेम की डिवाइन फेमिनाईं मतलब डी. एफ. भी कहते हैं। आने वाले दिनों में आपको दिव्य पुरुष और जुड़वाँ आत्मा की ज़िन्दगी कैसे होती हैं इसपे आप सभी को गहराई से लेख पढ़ने को मिलेंगे तो आप मेरे साथ इस ब्लॉग से जुड़े रहिये।
जो कभी विकट से विकट परिस्थिति के भी सामने हार न माने जो हरपल सत्य के राह पर चलती रहें जो सबको एकसमान रूप से प्रेम करें दूसरों के भूल पर तक्षण क्षमा करें और गुन्हाओं के विरुद्ध बिना भय खाये जो दूसरों के हक़्क़ में और खुद के अस्तित्व के लिए लड़ने से नहीं डरती जो साधारण लोगों के तुलना में एक ज़्यादा सुलझी हुई समझदार वो प्रेममई, वो विश्वासू, वो निडर, एकनिष्ठ, महत्वकांक्षी, कोमल हृदय, ममतामई, कला से भरी, एक ऊँचा व्यक्तित्व लिए, चरित्रवान, पुण्यवान, स्वाभिमानी, आत्मसम्मानी, निश्चल मन की, महकती हुई, चहकती हुई, वो सत्यप्रिया, शांतिप्रिय, चंचला, धैर्यशील, बुद्धिमान, सशक्त, न्यायप्रिय, सुन्दर सा आभामंडल, तीव्र सकारात्मक आकर्षण लिए हुए इस पृथ्वी पर एक ऊँचा और गहरा लक्ष्य लेकर जो जन्म लेती हैं वो होती हैं दिव्यस्त्री डिवाइन्फेमिनाईं [Divine Feminine - DF ].
दिव्यस्त्री / divine feminine |
दिव्या स्त्री के गुण और अवगुण :
दिव्यस्त्री के ये सारे गुण होते हैं किन्तु अवगुण भी होती हैं पर तब तक जब तक की वो अपने अस्तित्व को जान न ले पहचान न ले एक बार दिव्यस्त्री अगर अपने जीवन के लक्ष्य को जान ले प्राप्त कर ले तो शायद ही कोई ऐसी कमिया उसमे दिखाई दे सकती हैं। इसके कही न्यूनता होती हैं जैसे की दूसरों पे जल्दी भरोसा रखना, जल्दी क्षमा करना, दूसरों के लिए अपनी परवाह न करना, अपने आप पर लक्ष्य न देना, अपना समय व्यर्थ बातों में गवाना और बड़े जल्दी मायूस हो जाना। कभी कभी आलसी होना, निर्णय जल्दी न लेना, खुल कर दिल की बातें न बताना पर एक आशा में जीना की कोई आकर इन्हे समझे, इनकी बातों को बिना कहें सुने इन्हे जाने और वैसे ही करे जैसे इनके दिल में हैं तो फिर ये उनके लिए अपना सब कुछ लूटाने को तत्पर रहती हैं। अच्छी कमियाँ हैं न? पर यही सत्य हैं। पर ये इनके जागरूकता से पहले के लक्षण होते हैं। ये भी साधारण सी स्त्री जैसे दिखाई पड़ती हैं पर खास इन्हे वो बातें बनाती है जब ये जागरूक होती हैं जो आपने अभी ऊपर लेख में पढ़ा। दिव्यस्त्री भी खुद को तब तक साधारण सा ही समज़ती रहती हैं जब तक की इनके जीवन में कोई बड़ा तूफ़ान न आ जाये जहा इन्हे अपने अंदर के गुणों की क्षमताओं की शक्तियों की पहचान न हो जब तक ये उस परिस्थितियों से न लड़ ले। या फिर तब तक इनका दिव्यपुरुष या इनके सद्गुरु न आ जाएं। इनकी जागरूकता साधारण सी नहीं होती अताह कष्ठ सहने पड़ते हैं। तब तक ये बड़े ही जटिल परिस्थितियों से झुंझती रहती हैं। पर इनमे कुछ ख़ास ऐसे बातें और लक्षण होते हैं जो इन्हे भी खुद अपने आप पर मामूली या साधारण सा न होना ये बता देता हैं। ये कितना भी अपने आपको प्रयास करले किसी वातावरण में ढालने का पर ये भीड़ में जल्दी ढलती नहीं हैं कुछ वक़्त के लिए ही ये लोगों के साथ रहती हैं घुमती फिरती हैं। पर फिर ये बहुत जल्दी ऊब जाती हैं। ये हमेशा ही अपने आप को अकेला सा ही महसूस करती रहती हैं। और कही न कहीं इनकी यही सोच इन्हे ये सोचने पे मज़बूर कर देती हैं की ये औरों से कुछ अलग हैं। यही से इनकी आत्मा की खोज धीरे धीरे शुरू होती हैं और यही से इनका अध्यात्मिक सफ़र शुरू हो जाता हैं।
आखिर कैसे होती हैं दिव्यस्त्री ?
सही शब्दों में बताऊ तो ये एक उच्च कोटि की दिव्यस्त्री हैं जिन्हे हम अप्सरा, यक्षिणी, योगिनी, भैरवी, देवदूत, परी भी कहते हैं। जी, आपने सही पढ़ा मैं इन्हीं का वर्णन कर रही हूँ। रुकिए, आगे जानिए मैंने ऐसा क्यू कहा? इसका मतलब ये नहीं की ये अवतारित नहीं हो सकते जन्म नहीं ले सकते। ये होते हैं साधारण मनुष्यों की तरह इनका भी रहें सेहन होता हैं पर कुछ अलौकिक शक्तियां इनमे सुप्त होती है और कुछ हद्द तक जागरूक होती हैं। आम लोगों के तुलना से इनमे शक्तियां थोड़ी जागरूक होती हैं जो समय पर ही इन्हे जागरूक करनी होती हैं। तभी ये दिव्य बन पाति हैं। बहुत सी स्त्रीयोँ को ज्ञात हैं की हमारी जागरूकता हो गयी। अब ? अब आगे क्या? वो आगे बढ़ती ही नहीं उन्हें ये पता ही नहीं होता की जागरूक होने के बाद करना क्या होता हैं ? जागरूक होना मतलब चेतना जागरूक होना -आत्मजागरण होना अपने लक्ष्य की खोज करना उसपे कार्य करना अपने अंदर की शक्तियों को जागरूक करना अच्छे गुरु से दीक्षित होकर साधना और तपस्या करना जीवन को जीने की कला को सीखना। साधना मतलब खुद को साध लेना ये, ये होती हैं सच्ची और वास्तविक दिव्यस्त्री। और जो ये नहीं करती तो वो बस कुछ पल के लिए ही जागरूक होती हैं फिर सुप्त अवस्था में चली जाती हैं। क्योंकी वे कुछ करती ही नहीं। और फिर कही मोहमाया में फस जाती हैं। और अपने आपको ट्विन जुड़वाँ आत्मा कहते हैं। बस एक घमंड में रहती हैं की हां मैं जुड़वाँ आत्मा हूँ दिव्यस्त्री हूँ। जो दिव्यस्त्री होती हैं वो कभी भी किसी को खुद का बखान नहीं करती। न ही जल्दी किसी को समझने देती हैं। ऐसे ही दिव्यस्त्री को ट्विन जुड़वाँ आत्मा कहते हैं। ऐसी लुलिपुच्कि नहीं होती हैं जुडवाँ आत्मा जो अपने दिव्यपुरुष के लिए रोते बैठे घंटों घंटों उसकी याद में कोई भी कार्य न करे। ट्विनफ्लैम क्यू आते हैं पता हैं? अपने मोक्ष के लिए अपनी ऊर्जा का स्तर बढ़ाने के लिए अपने लोक में एक ऊँचा लोक प्राप्त करने के लिए। कुछ अपना श्राप पूरा करने के लिए आते हैं, कोई जीवन का अनुभव लेने के लिए इस पृथ्वी पर आते हैं। कुछ बड़ा लक्ष्य को पूरा करने के लिए आते हैं तो कुछ अपने मुक्ति के लिए मोक्ष के लिए आते हैं। पर ऐसा क्यू ? बताती हूँ। पृथ्वी एक कर्मा भूमि है जिसे मृत्यु लोक भी कहते हैं। यहाँ शरीर धारण किया जाता हैं जो पंचतत्वों से बना होता हैं। जल,अग्नि,वायु,पृथ्वी,आकाश इनके समावेश से ये शरीर प्राप्त होता हैं और इन्ही में ७२००० नाड़ीयां होती हैं जिसमे से मुख्य ३ नाड़ियाँ होती हैं जिन्हे हम इडा, पिंगला, सुषुम्णा कहते हैं जो महाशक्ति कुण्डलिनी के आधार होते हैं। इनमे भी जो सुषुम्णा नाड़ी हैं उसी में कुण्डलिनी शक्ति का वास होता हैं उसे ही कुण्डलिनी शक्ति कहते हैं और जो इड़ा नाड़ी पुरुषतत्त्व का दायाँ भाग और पिंगला नाड़ी स्त्रीतत्त्व का बायाँ भाग होता हैं और जो दोनों नाड़ियों के ऊर्जा को संतुलन रखे तो सुष्मणा नाड़ी के द्वारा कुण्डलिनी जागरण होती हैं। तब व्यक्ति महामानव बन जाता हैं। यही प्रक्रिया ट्विनफ्लेम की होती हैं। जो स्त्री भाग हैं वही डिवाईन फेमिनाईं दिव्यस्त्री हैं। जब ये जागरूक हो जाती हैं तो ये पुरुष नाड़ी को भी जागरूक कर देती हैं तब ये साधारण नहीं रहती। इसलिए इन्हे दिव्यस्त्री कहते हैं। इसका वर्णन मैंने कुण्डलिनी शक्ति कैसे जागरूक होती हैं पिछले लेख में लिखा हैं। आप वो भी पढ़ लीजिये। आगे और जानते हैं, ये पृथ्वी एक पाठशाला हैं जहा हर जीव अपने कर्मो से कुछ सीखता हैं कुछ सिखाता हैं। इसलिए यहाँ शरीर मिलने के कारण देवी, देवता, दानव भी जन्म लेने के लिए ललायित रहते हैं। जिससे की उन्हें अपने कर्मो से मोक्ष मिल सके। देखिये कुछ किस्सों को आप किस्से ही समझेंगे और कोई इसे सत्य भी समझेंगे पर जो इस रास्ते पे हैं मैं उनके लिए सत्य का प्रकाश डाल रही हूँ न की भटका रही हूँ और यदि आप में से कोई ये कहें की ये सब मनघडण हैं तो उन्हें मैं सीधा कहूँगी की फिर जाईए और सत्य की खोज कीजिये मेरी बातों में मत आइये। क्यूकी ये कोई संसारी आँखों देखि बातें नहीं चल रही हैं की जिसपे भावनाओं का प्रमाण दूँ।
यह अध्यात्मिक जगत की बात हो रही है और ये एक विज्ञान हैं। अध्यात्मिक को समझना आसान नहीं यहाँ अलौकिक घटनाएं होती हैं अध्यात्मिक ऐसे ही हैं आपके मानने न मानने से अध्यात्मिक बदलने नहीं वाला ये ऐसे ही रहने वाला हैं जिस तरह से विज्ञानं को नहीं बदला या झूठा जा सकता हैं उसी प्रकार अध्यात्मिक को भी झूठा कहना गलत हैं विज्ञानं को देखने के लिए संसारी दो आँखें हैं और अध्यात्मिक बातों को देखने के लिए तीसरी आँख हैं उसे खोलो तो सब कुछ जान जाओगे। अध्यात्मिक एक विज्ञानं हैं जिसमे आत्मा के स्तर पर नए नए शोध होते रहते हैं। और मेरी बातों से वही सहमत होगा जो अध्यात्मिक जगत से जुड़ा हैं अर्थात जो अध्यात्मिक रास्ते पे हैं। जिसने अलौकिक घटनाएं बचपन से अनुभव किये हैं वही समझ पायेगा मेरी बातों को। बुद्धि जीवी लोग अपना सत्य खुद खोज ले हम अध्यात्मिक लोग कुछ ज़्यादा ही ज़िद्दी होते हैं अपने लक्ष्य को लेकर सो हमें इन सब से फरक नहीं पड़ता की क्या यहाँ सोचा जा रहा हैं ? कुछ बातों पे बस विश्वास करना अत्यंत आवश्यक होता हैं। जैसे की खुद के ऊपर भरोसा रखना क्या ये सत्य नहीं हैं? क्या हम हमारी भावनाओं के प्रमाण देते हैं? नहीं न? तो ये कुछ शोध कर्ताओं ने शोध की हैं और ये मेरी शोध हैं। जो भी मेरे जीवन अनुभव हैं जो कुछ भी मेरे सद्गुरु से मैंने प्राप्त किया वही बता रही हूँ। बिना अनुभव के मैं कुछ भी नहीं बोलती। चाहे आप माने या न माने आपके मानने न मानने से सत्य नहीं बदलता पर सत्य हैं क्या? खुद शोध लगाए मैं यही कहूँगी क्यू की अध्यात्मिक भी एक शोध लगाने का प्रयोग हैं।
Arpita Sinha: Story of the first love in the world. Image source: blognox.com |
सरल सी बात हैं दिव्यस्त्री कैसी हो सकती है आप ही सोचिये ? क्या वो साधारण सी हो सकती हैं? क्या इसीलिए ही उसे दिव्यस्त्री कहते हैं? कुछ तो असाधारण सी बात हैं उसमे तभी तो वो सबसे हटकर दिव्यस्त्री कहलाती हैं। कुछ उदाहरण रख रही हूँ आपके सामने जिस तरह माँ पारवती, सीता माता, राधारानी, मीराबाई, जनाबाई, अक्कादेवी ये सब कौन थी? यही तो दिव्य स्त्री हैं जिनका वर्णन आज आपको दे रही हूँ। पर इससे ट्विनफ्लैम क्या साबित हो जाता हैं ? यही बता रही हूँ की जिस तरह से सती माता ने पुनः पाँर्वती माता के रूप में जन्म लिया जो की सती की पूर्व यात्रा अपूर्ण होने के कारन वो अपना लक्ष्य न साध सकी इसलिए सती ने पुन्हा पाँर्वती माता के रूप में जन्म लेकर अपने लक्ष्य को साध लिया। माता पाँर्वती ने एक मनुष्य जाती में जन्म लिया और अपने लक्ष्य मतलब शिव को पाने के लिए जो एक साल तक गुफ़ा में पत्तों और पानी पे रहकर घोर तपस्या की जिनके तपस्या से शिवजी का आसन हिला तो उन्हें भी उनका प्रस्ताव स्वीकार करना पड़ा और जब उनका विवाह हुआ तो शिव की आदि शक्ति पाकर बाएं भाग में जुड़कर उनकी अर्धांगिनी आदिशक्ति माँ पाँर्वती महाकाली कहलायी। धीरे धीरे उनकी शक्तियां उन्हें प्राप्त हुई और एक एक कर के उनके रूप बाहर आते गए। क्या ये संभव नहीं हैं ? संभव हैं यदि मन में ठान लिया जाये। माँ पाँर्वती हम सब स्त्रियों के लिए एक उच्च कोटि का उदाहरण हैं की कैसे मानव जाती में जन्म लेकर कठोर तपस्या कर वे आदि शक्ति बने। उनके लिए भी सहज नहीं था ये सब करना। पर जनकल्याण के लिए और सही मार्ग साधना मार्ग प्रशस्त करने के लिए उन्हें भी सारी परेशानियों का सामना करना पड़ा। ताकि साधारण व्यक्ति भी नर से नारायण बनने की कला जाने। उन्हें ये कोई कह न सके की आप तो भगवान हैं आपको क्या पता हमारी पीड़ा? पर सबसे ज़्यादा पीड़ा तो इन स्त्रियों ने इन दिव्यपुरुषों ने ही सहन किया हैं। उसी प्रकार सीता माता जो साक्षात् महालक्ष्मी थे जो मिथिला की राज कुमारी थी पर श्री राम जी के साथ भी उन्हें वन में भटकना पड़ा फिर रावण के वटी में रहकर अपने पति का वियोग और कही पीड़ा को सहना पड़ा, उसके बाद भी उनका त्याग करना और सारा जीवन पीड़ा में ही निकालना। राधारानी वे लक्ष्मीछाया मतलब लक्ष्मी ही थे जो बरसाने की राजकुमारी कैसे एक ग्वाले के प्रेम में पड़कर अपना सारा जीवन अपने प्रेमी के प्रतीक्षा में और बरसाने लोगों के देख भल में बिताया। क्या वो पीड़ा नहीं थी ? क्या उन गोपियों की पीड़ा नहीं थी ? मीराबाई जो महलों की राजकुमारी थी पर वे भी विवाहित होने के बाद अपना सब कुछ कृष्ण को सौपने के बाद कैसे वे भी अपराधी साबित हुयी और अंततः उन्हें विष का प्याला देकर मृत्युदंड दिया। जनाबाई जो विट्ठल भक्त थी उसपे भी विट्ठल के हार का चोरी के इलज़ाम में सूली पे चढ़वाना चाहा था पर अंत समय में प्रभु ने आकर सब वर्णन बताया की वो भक्त है उनकी वो निर्दोष हैं अपने आप विट्ठल के गले की माला जनाबाई के गले में पोहोची क्या वो दिव्यस्त्री नहीं थी? क्या उन्हें पीड़ा नहीं हुयी? अक्कादेवी जो खुद एक भैरवी थी पर उनका विवाह भी एक साधारण से पुरुष से हुआ पर अक्कादेवी की भक्ति उन्हें खटकने लगी फिर उनहोंने अपने पति का सबकुछ त्याग कर यहाँ तक कपडे भी त्याग कर वे भैरवी बन कर शिव के भक्ति में लीन हो गयी। क्या उनके लिए सरल था ये सब? चलो शास्त्रों की छोडो लता दीदी, मैरी कॉम, कल्पना चावला, इंदिरा गाँधी, अम्माँ जयललिता क्या ये दिव्य स्त्री नहीं थे ? इनके लिए अपना लक्ष्य साधना सहज था ? नहीं पर उन्होंने अपने लक्ष्य को साध लिया यही उनका उद्देश्य था। आज भी लोग इन दिव्यस्त्रीयों को पूजते हैं। उन्होंने कही भी नहीं कहां की हमें पूजे पर उनकी करनी ही ऐसी थी की जग अपने आप उन्हें पूजने लगा। जब तक वे जीवित थे तब तक उन्हें बस तकलीफ ही दिए बहुत सताया और आज भी कही न कही कोई न कोई उनके अस्तित्व पे ऊँगली उठाते ही हैं। बोलने वाला तो समझ आता हैं की कितना ज्ञानी और संस्कारी हैं। इससे उसे ऐसा लगता हैं की वो सच बोल रहा हैं तो उसे यही कहूँगी शास्त्र पे मत जाओ अपने अंदर खोज करो उत्तर वही हैं पर याद रखिये उसके लिए भी गुरु का होना आवश्यक हैं। आपकी डीग्रीयाँ मरने के बाद काम नहीं आएगी, बल्कि आपके संस्कार और कर्मा काम आएंगे। कुछ पल के जीवन में इतना खो गए हैं लोग की खुद पर भी समय नहीं मिलता सत्य की खोज करने के लिए। और सत्य की खोज के लिए ही ट्विनफ्लेम आते हैं इसलिए जागरूकता होती हैं उनमे की आस पास के लिए उदाहरण बनिए इसलिए साधारण व्यक्ति के तुलना में ज़्यादा पीड़ा और दुःख ट्विनफ्लेम के हिस्से में ही आती हैं। ताकि वो लोगों के लिए आदर्श बन सके।
दिव्यस्त्री के लक्षण :
१. जो कभी झूठ बोलना और सुन्ना पसंद नहीं करती। जो अगर कुछ गलतियां कर भी ले तो पुर्ण पश्चाताप करती हैं। और ऐसा करने से वो कभी चुकती नहीं।
२. जो सहनशीलता से और आत्मसम्मान से भरी होती हैं।
३. जो कभी भी किसीको चोट पहुचाने का विचार भी नहीं करती जो मृदुल, सुलझी हुई और शांत स्वाभाव की होती हैं।
४. प्रकृति से बहुत प्रेम होता हैं। ज़्यादा तर ये शाकाहरी ही होती हैं और लोगों की, प्रकृति की सेवा भी ज़्यादा से ज़्यादा करती हैं। निरंतर प्रकृति को बचाने के लिए कोई न कोई शोध और प्रयास करती ही रहती हैं।
५. हो सकता हैं की कोई कोई असाधारण सी दिखने में हो पर उनका व्यक्तित्व अजीब सा आकर्षण लिए हुए रहता हैं। पर बहुत ही बार ये शरीर से सुन्दर और आकर्षित होती हैं। असाधारण ढृढ़ मन होता हैं इनका। चहरे पर १०० चाँदनी की चमक लिए हुए ये जन्मी हुई होती हैं। इनको देखने मात्र से भी बहुत से रुके काम बन जाते हैं। यह बहुत ही शुभ दायक होती हैं। कल्याणकारी होती हैं। इनके कदम जहा पड़े वह हलचल सी मच जाती हैं। बुरी शक्तियां वहाँ ज्यादा देर तक वास नहीं करती। बुरी शक्तियां इनका हमेशा नुकसान करने के हेतु में ही रहती हैं पर नाकामियाब ही रहती हैं। क्योंकि एक समय के बाद ये उन शक्तियों को काबू करना भी सिख जाती हैं।
६. घुस्सा बहुत कम करती हैं खुद पे बहुत नियंत्रण रखती हैं, पर यदि घुस्सा आ जाये तो प्रकृति को भी हिला दे ऐसे इसकी शक्ति होती हैं।
७. जो हमेशा सत्य की खोज करें और दूसरों का दुःख दूर करने में सक्षम होती हैं।
८. सदैव मन में सद्धभावना, धरम और भक्ति के मार्ग में चलने वाली होती हैं। ईर्ष्या, लोभ, मोह, बंधन, काम, क्रोध, द्वेष इन विकारों से बहुत दूर रहती हैं ये निरंतर ही अपने इस कमियों पर कार्य करती रहती हैं।
९. साधाहरण लोगों के तुलना में ये एकांत में वास करना, साधना करना, तपस्या करना, नयी कलायें सीखना ध्यान करना, नए बातों का शोध करना, योग करना बच्चों के साथ ज़्यादा समय बिताना जहा से नया ज्ञान प्राप्त हो ऐसे जगह ऐसे लोगों से संपर्क रखना।
१०. निरंतर अपने लक्ष्य पर केंद्रित रहती हैं और साथ में अपने आस पास का वातावरण का भी ख्याल रखती हैं।
११. इनकी ऊर्जा बहुत अधिक मात्रा में उच्च स्तर की होती हैं इसलिए साधाहरण लोग इनके आस पास ज़्यादा देर तक नहीं रह पाते। ईच्छाशक्ति इनकी आकाश के ऊँचाई को छू ले ऐसी संकल्प वादी और मेहनती होती हैं. दिव्यस्त्री प्रकृति की प्रिय होती हैं इसलिए इनका वैसे ही लालन पालन और संरक्षण भी प्रकृति के ओर से होता हैं।
१२. इनके विश्वास का कोई तोड़ नहीं बहुत अधिक और अटूट विश्वास इनका प्रकृति और अपने इष्ट अपने जोड़ीदार पे अधिक मात्रा में होता हैं। तभी तो इनकी प्रार्थनाएं भी जल्दी सफल होती हैं। इनकी खासियत ये होती हैं की जितनी इनकी परीक्षा कड़क होगी उतना ही इनका विश्वास गहरा होते जाता हैं। आवुमन लोगों के साथ ऐसा नहीं होता पर इसलिए ही ये ख़ास होती हैं इनका विश्वास स्वयं भगवन भी नहीं हिला पाते। ये इतनी दृढ़ निश्चयी और एकनिष्ठ होती हैं। वाकई में विश्वास कैसे करना ये इनसे सीखना चाहिए।
१३. आकर्षण और अजीब शक्तियां इनमे होती हैं पर ये साधाहरण लोगों में उनके जैसा ही रहना पसंद करती हैं ताकि इन्हे ही तकलीफ न हो। अगर ये किसी को पसंद नहीं करती तो वो सरल मुंह पे बोल देगी, या कुछ इशारों में समझायेगी या चुपचाप अपना रास्ता नापेगी या फिर ज़्यादा हुआ तो फिर अपने शस्त्र को उठाये बगैर नहीं रहती इनका घुस्सा भी तेज़ होता हैं सामान्य व्यक्ति इन्हे संभल नहीं सकता। इनकी आँखों में भयंकर सम्मोहन शक्ति होती हैं जो कोई भी व्यक्ति ज्यादा देर तक इनसे वार्तालाप नहीं कर सकता। ये शब्दों के जादूगर भी होते हैं इसलिए इनसे जितना भी कठिन हैं। इनकी प्रार्थना ही इनकी ताक़त होती हैं। ये अगर ठान ले की ये नहीं चाहिए तो वो बात उनके पास रहती ही नहीं और अगर ये कह दे की ये चाहिए तो वो बात उनसे दूर कभी होती ही नहीं जब तक ये न चाहे तब तक।
१४. ये हमेशा अपने लक्ष्य पर और अपने कमियों पर गुप्त तरीके से कार्य करना पसंद करती हैं। ये किसी और की दखल अंदाज़ी पसंद नहीं करती। ऐसा करने मात्र से ये दण्डित भी करती हैं चाहे वो जो भी हो। इनका लक्ष इनके लिए सब कुछ होता हैं। एक बार ये अपने आप को तक न्यौछावर कर दे। ऐसी कठोर भी होती हैं अपने लक्ष्य को लेकर।
१५. ये अपनों से बहुत प्रेम करती हैं पर किसी के बंधन में नहीं रहती ना हीं इसे बंधन में रहना पसंद होता हैं। मतलब की मोहमाया में रहना। ये जल्दी प्रकृति से जुड़ जाती हैं तभी ये अच्छी वैद्य भी कहलाती हैं। स्वतंत्र रहना, खुशबू , साफसुथरा रहना, प्रकृति में निवास करना, उनके साथ समय बिताना, गुरु अपने इष्ट अपने प्रेमी अथवा पति के प्रति एकनिष्ठ और समर्पित रहना इन्हेबहुत पसंद होता हैं।
१६. दिव्यस्त्री सक्षम और संतुलन रहती हैं। बच्चे और पशु-पक्षी इनके ऊर्जा में खुद को सुरक्षित सा अनुभव करते हैं तभी ये पशु-पक्षी प्रेमिका भी कहलाती हैं।
१७. जब ये जागरूक हो जाती हैं और संतुलन हो जाती हैं तब इनके चहरे पर बहुत तेज होता हैं और ये सदैव ही प्रसन्न चित्त रहती हैं चाहे परिस्थिति कितनी भी जटिल क्यू न हो। लोग अक्सर इन्हे देख के जलते भी हैं और उनका बुरा करने का सोचते भी हैं क्यू की ये उनकी तरह नहीं होती पर ये अपने आप में एक योगिनी एक भैरवी होती है। इनके पास हर प्रश्न का समाधान होता हैं। ये स्वयं तंत्र पारंगत होती हैं इसलिए किसीका तंत्र भी इन्हे जल्दी असर नहीं करता। भगवान स्वयं ही इनकी बुरी और दुष्ट शक्तियों से रक्षण करता रहता हैं। ये भगवान की सबसे प्रिय होती हैं इन्हे दुखाना मतलब खुद पर मुसीबत ओढ़ लेना होता हैं। प्रकृति उन्हें क्षमा नहीं करती जो इन्हे दुखाये।
१८. इन्हे भगवान की और से हर तरह की सुरक्षता प्रदान होती रहती हैं और खुद प्रकृति इनकी गुरु होती हैं जो इन्हे सब समय समय पे सिखाती हैं। इनका इंटुइशन मतलब आत्मशक्ति बहुत उच्च होता हैं, इसलिए ही ये जल्दी से जागरूक हो जाती हैं और प्रकृति से भी जल्दी जुड़ जाती हैं दिव्यपुरुषों के तुलना में।
१९. ये अपना रास्ता अपने चिकित्सा और अपना मार्ग स्वयं खोजती हैं इसमें इनकी कोई सहायता नहीं करता सिर्फ प्रकृति ही इनकी सहायता करती है इनकी ऊर्जा स्तर के अनुसार वैसे लोग भेजकर इनसे कार्य करवाती हैं। ये लोगों के कार्य सहज ही कर देती हैं पर इनके कार्य इनके सिवाय कोई नहीं कर पाता। किसी भी कार्य को ये पूर्ण किये बिना स्वस्थ नहीं बैठती। इनके कार्य ही ऐसे होते हैं की इनके बिना कोई न कर पाये। असीम धैर्य होता हैं इनमे। अपने आत्मबल और विश्वास के बल पे ये असंभव से लगने वाले कार्य को भी पूर्ण कर दिखाती हैं।
२०. एक शोधकर्ता, सक्षम आध्यात्मिक गुरु, ज्योतिषशात्राज्ञ, सहज पाठिका [इन्टुइटिव रीडर ], ढृढ़ संकल्प वाली सक्षम नेता, कलाकार, संगीतकार, सुग्रण पाक सिद्धी और भी बहुत कुछ होती है। जो कुछ भी आपको पता हो और गुप्त हो वो भी ये उन क्षेत्रों में पारंगत होती हैं।
२१. छल कपट से हमेशा दूर ही रहती हैं और ऐसे लोगों से भी दूर रहना ज्यादा पसंद करती हैं। परेशानी जो भी हो जड़ से उखाड फेकना इनका पेशा होता हैं। ये परेशानियों से घबराती नहीं अपितु ये डटकर और बड़े उत्साह के साथ इनका सामना करती हैं तभी तो ये दिव्यस्त्री कहलाती हैं।
ऐसा नहीं हैं की आज के युग में ऐसी स्त्रियां नहीं हैं। हैं पर वे सामने नहीं आना चाहती क्यू की उनके लक्ष्य पर वे कार्य कर रही हैं और कुछ अपनों के बीच में रहकर भी अपने शक्तियों को गुप्त रखे हुए रह रही हैं। समय आने पर ये भी सामने आ जाएगी। इनकी खासियत हैं, ये आपको शांत, एकांत में वास करने वाली और ज़्यादातर साधना तपस्या करते वक़्त दिखाई देगी अगर आपको ये दिखाई दे तो दूर से ही इनको नमन कर लेना क्यू की इनका स्पर्श मात्र ही एक औषधि होती हैं जो सौभाग्य से प्राप्त होती हैं, ये बहुत दुर्लभ होती हैं ये ज़्यादातर अपनी पहचान गुप्त ही रखती हैं। अगर दिखे तो इनके सानिध्य में रहकर आप बहुत कुछ सिख लेना। ये आपको निराश नहीं करेगी पर इन्हे नाराज कभी मत करना वार्ना आपके आशीर्वाद भी आपके श्राप में बदलते वक़्त देरी नहीं लगेगी। इन्हे धैर्यशील , कठोर सिद्धांत, मज़बूत सीना [सख्त आत्मविश्वास ] सहनशील लोग ही पसंद आते हैं। ये उनकी वैसी परीक्षाएं भी लेती हैं यदि कोई सफल हो गया तो वे उसे वो सब कुछ प्रदान करती हैं जो व्यक्ति सोच भी नहीं सकता। अगर ऐसी कोई स्त्री दिखे तो समझ जाना की ये साधारण नहीं हैं। ये ट्विनफ्लेम डिवाइन फेमिनाईं जुड़वाँ आत्मा की दिव्यस्त्री हैं।
विश्वास हैं मुझे की आपको सभी प्रश्नो के उत्तर प्राप्त हो गए होंगे। यूट्युब पे पता नहीं क्या क्या बताते हैं। पर जो सच्चे ट्विनफ्लेम होंगे जो दिव्यस्त्री होगी वही ये सब जान सकती हैं बता सकती हैं और ज़्यादातर ये अपना बखान नहीं करती ये लोगों पर छोड़ देती हैं। इन्हे बस अपना लक्ष्य साधना होता हैं ये ज़्यादा लोगों के बातों को साबित नहीं करती बैठती। दिव्यस्त्री बहुत अधिक सहनशील होती हैं जब तक हैं तब तक ठीक हैं वर्णा इनके घुस्से का सामना करके देखना आप, आप वहाँ पे खड़े भी नहीं रह पाओगे। आप झगड़ा तो कर लोगे पर बाद में आपकी ही ग्लानि आपको खाने लग जाएगी। अच्छा जी, तो अब मैं अपने वाणी को विराम देते हुए अपने लेख को यही रोकती हूँ आज्ञा दीजिये की अगला लेख जल्दी से लेकर आऊ। अगले लेख में हम जानेंगे की दिव्यस्त्री का जीवन कैसा होता हैं। तब तक आप अपना ख्याल रखे और शोध लगाईये अपने अंदर क्या आपमें भी वो गुण हैं ? यदि हैं तो समय व्यर्थ न गवाएँ। क्या आपके भी पास ऐसी स्त्री हैं? यदि हैं तो उनका शरण लीजिये और अपने जीवन को सौभाग्य में बदले।
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