मूलाधार चक्र
आपका हृदय से बहुत बहुत स्वागत हैं मेरे इस अध्यात्मिक जगत के लेख में. आप कुशल मंगल होंगे यही कामना करती हूँ आज मैं आपके सामने फिर एक नए विषय पर चर्चा करने आयी हूँ और आशा करती हूँ की आपको इस विषय में रूचि लगे खैर ये विषय कोई रूचि लेने जैसा नहीं हैं, पर ये एक ज्ञान हैं जो शायद ही कोई इतने विस्तार से आपको बताएगा।आज में कुण्डलिनी शक्ति के पहले चक्र मूलाधार चक्र पर बात करुँगी और हम मूलाधार चक्र का वर्णन , मूलाधार मंत्र के बारे में विस्तार से और मूलाधार चक्र के संबंध में जानेंगे।
मूलाधार चक्र वर्णन
यह मूलाधार चक्र मानव शरीर के भीतर स्तित कुण्डलिनी शक्ति ७ चक्रों में से सबसे पहिला मूल चक्र हैं जिसे मूलाधार चक्र कहते हैं। मूलाधार चक्र हमारे शरीर के सबसे निचले हिस्से अनुत्रिक के आधार में स्तित हैं, इस चक्र का लाल रंग हैं और चार पँखुड़ियों का होता हैं। इसके बाएं पंखुड़ि के ऊपर ' सँ ' बीज अक्षर हैं ठीक उसके निचले पँखुड़ि के ऊपर ' षँ ' बीज अक्षर हैं इसी के सामने वाले पँखुड़ि पर ' शँ ' बीज अक्षर हैं और इसके ऊपर मतलब ' सँ ' बीज अक्षर के सामने ' वँ ' बीज अक्षर हैं और इसके ठीक बीच में ' लँ ' बीज अक्षर हैं जो की इस चक्र का मूल मंत्र हैं। इस चक्र में बायीं और डाकिनी और दायीं और शाकिनी विराजमान हैं ये महाकाली देवी के स्वरुप हैं अतः ये महाकाली ही स्तित हैं और यह हमारे कामवासना, प्रार्थना मांगने और पूरी करने की क्षमता और प्रार्थना को जीवन में स्तिर रखने की क्षमता रखती हैं।मतलब इनका यह पृथ्वी तत्व से सम्बंधित हैं इच्छा को पूर्ण करने की क्षमता प्रधान करती हैं।अगर कोई जिव इस चक्र और शक्ति का गलत इस्तेमाल करता हैं तो यहाँ देवी उसकी ज़िन्दगी का विनाश कर देती हैं।जैसे की कामवासना के चलते किसी स्त्री या पुरुष के साथ दुर्व्यवहार करना सम्मान न करना खुद का और दूसरों का भी, दूसरों को खुद के सामने छोटा ,पराया ,गलत, या फिर नींच हिन् भावना रखना, या फिर खुद का सम्मान न करना अपने खुद के या दूसरों के लिंगभेद से परेशान करना चीड़ना, शर्म करना या फिर खुद को या दूसरों को कोसते रहना ये सारी हरकतें करने से माँ कुण्डलिनी शक्ति मतलब महाकाली नाराज़ होकर हमें दंड देती हैं। और हमारा मूलाधार चक्र बंद हो जाता हैं और नतीजा हमें परेशानियों का सामना करना पड़ता हैं। ठीक इस चक्र में सात सूंड वाला हाथी भी हैं जो गणपती को दर्शाता हैं मतलब सुख, शांति, समृद्धि, निरोगी काया, सिद्धि, बुद्धि और मोक्ष प्रदान करते हैं। और ठीक बीच में त्रिकोण में शिवलिंग पिंड हैं जिसपे सर्प साढ़े तीन पेस मारकर निचे ज़मीन की ओर मुँह करके सोया हैं इसे कुण्डलिनी शक्ति भी कहा गया हैं। इस सर्प का जागना मतलब ही कुण्डलिनी शक्ति का जागरूक होना कहते हैं।इसके मंत्र को हमेशा शुद्ध भाव से ही जाप करना चाहिए ऐसा करने से आपको शक्ति का एहसास होगा मन शांत चित्त होगा और वातावरण भी सुगन्धित होता हैं साथ ही बुद्धि में और आयु में वृद्धि होती हैं।
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मूलाधार मंत्र के बारे में विस्तार से
' ल ' का मतलब हैं लय और उसपर जो बिंदु लगाकर ' लं ' संबोधते हैं वो महाकाल को संबोधते हैं ये आप नहीं जानते होंगे ,इसलिए आप कभी भी सोच समझकर ही इस मंत्र का सही तरीके से मार्गदर्शन से उच्चार करें।क्यूँकि तंत्र का निर्माण ही शिव शक्ति से हुआ हैं आप उनके इच्छा और कृपा के बिना आप मूलाधार चक्र जागरूक नहीं कर सकते हैं।ये मैं नहीं तंत्र और बड़े बड़े तपस्वी ऋषियों ने कहा हैं।ये चक्र मोह माया से भी संबंध रखता हैं। ये हमारे श्रीर के ७२००० नाड़ियों को वश में रखता हैं और इसी से जुड़कर ३ मुख्य नाड़ियाँ भी जुड़ी हुई रहती हैं वो इस प्रकार हैं, इंगला, पिंगला और सुषुन्मा ये अगर जागरूक हो जाए तो इंसान आम इंसान नहीं रहता वो भी देवता सामान बन जाता हैं उसमे अपार शक्तियाँ आ जाती हैं ,मतलब की उसे सिद्धियाँ हासिल होने लगती हैं।सिद्धियाँ हासिल होने का अर्थ ये हैं की अगर वो साधक कोई साधना करता हैं तो उसमे आम इंसान के मुक़ाबले में की क्षमता ज्यादा होती हैं ,उसमे कोई भी सिद्धि हासिल करने की बहुत अधिक तक क्षमता आ जाती हैं।इसके जागने से बुद्धि में वृद्धि होती हैं।इस चक्र का रंग लाल और काला होता हैं।काला रंग महाकाली को दर्शाता हैं और समय को भी इसे हम ब्लैकहोल भी कहते हैं जो समय से परे होता हैं यानी की साधक समय को अपने अनुसार चीज़ो को ढाल सकता हैं।महाकाली माँ को समय परिवर्तन की देवी भी कहते हैं जो वास्तव में स्तित हैं और जिनपर महाकाली माँ की कृपा हो जाये तो उसको अष्ट सिद्धियाँ हासिल होते हैं।और ये सात्विक साधना से प्राप्त होती हैं तो उसे स्वर्ग की अनुभूति होती हैं ,मगर कोई भी इंसान तामसिक साधना करेगा तो वो नरक ही पायेगा।जो व्यक्ती मोक्ष पाना चाहता हैं तो उसे सात्विक साधना ही करनी चाहिए।इसलिए मूलाधार चक्र को धीमी ध्यान से अथवा मंत्र जाप से ही जागरूक करना चाहिए या फिर किसी योग्य गुरु के निर्देशन से ही इसकी साधना करनी चाहिए।
मूलाधार चक्र के संबंध में
- रंग - लाल ,काला।
- कमल - चार पंखुड़ियों वाला।
- मंत्र - 'लं '
- तत्त्व - पृथ्वी।
- इष्ट देवता - पशुपती महादेव, महाकाली, गणेश।
- प्रतीक - कुंडलिनी , शिवलिंग ,त्रिकोण।
- ग्रह - मंगल।
- विशेष गुण - काम ( कामवासना ) .
- चरित्र - आलस्य।
- अंग / इंद्रिय - नाक
- स्थान - मेरुदण्ड में सबसे निचले हिस्से में , लिंग गुदा के बींच स्तित।
- जागरण होना - कल्पनाओ में रहना , अत्यधिक कामनाये होना , खुद को अलग समझना।
- चार पंखुड़ियाँ कमल - चार मुख्य नाड़ियाँ होना।
- संबंध - मोह माया, बुद्धि , मोक्ष।
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