गुरुवचन
धन्य हैं वो शिष्य जिसके जीवन में सदगुरूदेव हैं। कुछ महत्वज्ञान जो सिर्फ सदगुरु हि अपने शिष्य को देते हैं. जो शिष्य उनके वचन को अपने जीवन में उतार लेता हैं उसका जीवन समस्त पापो से मुक्त होकर ब्रह्माण्ड का ज्ञान और संपूर्ण रूप से आनंद से भर जाता हैं। यह सिर्फ मेरे गुरु ने नाहीं अपितु समस्त ब्रह्माण्ड ने कहा हैं। क्यूँकि गुरूदेव सिर्फ शरीर रूप नहीं अतः चलता फिरता ब्रह्माण्ड ज्ञान हैं, अपने गुरू को कभी भी अपने जैसा सहशरीर वाला इंसान ना समझे और उनको सदैव हीं विनम्रता से प्रणाम करें और उनके वचनो का पालन करते हुए अपने भितर और अपने जीवन में उतरणे का प्रयास करते रहे।परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी |
Image Source - Google | Image by-Jyoti Dhakal
गुरूदेव कहते हैं कि
- जो मैं तुम्हे ज्ञान ,चेतना दे रहा हूँ वह कोई पन्नो पर या पुस्तकों मे सॅंजो के रखने के चीज़ नही। मैं तुम्हे वह चेतना दे रहा हूँ जिससे तुम्हारे दिव्य चक्षु जागरत हो सकें तथा तुम इन समस्त शक्तियों को अनुभव कर सको जिनको हमने देवी देवता कहा है।
- और यह तभी संभव है जब तुम निरंतर गुरु के संपर्क मे रहो। तभी वह चेतना का प्रवाह बराबर गतिशील रह सकता है और गुरु संपर्क में रहना एक बहुत महत्व पूर्ण क्रिया है क्यूँकि जब एक सुखी लकड़ी भी एक चंदन के संपर्क में आ जाती है तो वह साधारण लकड़ी भी अपने आप में सुगंधमय हो जाती है।
- गुरु चेतना का पुंज है, एक चेतना का स्रोत है, एक चेतना का सागर सागर है। जब आपके निरंतर संपर्क में रहते है तो धीरे-धीरे वही चेतना आपमे भी व्याप्त होने लग जाती है। उससे जुड़कर आपका भी जीवन सुगंधित तरनगीत और दिव्य हो जाता है।
- गुरु से जुडने का अर्थ कोई गुरु को पकड़ना नही होता। जुड़ने का अर्थ है उसके हृदय से अपने हृदय के तारों को जोड देना, अपनी आत्मा को लीं कर देना, अपने मश्तिस्क और विचारों को पूर्णतहा उसपर केंद्रित कर देना ..ऐसा कर देने की फिर आपमे और गुरु में कोई दूरी ही ना रहें, कोई भेद ही ना रहें।
- गुरु के प्राणो से जुड़ने की आवश्यकता है क्यूंकी गुरु का शरीर नही उनके प्राण ही उस चेतना का स्रोता है। जब यहा जुड़ाव होता है तो फिर स्वयं आँखों से प्रेमश्रु छलक पड़ते है। फिर स्वयं गुरु का नाम स्मरण करने लगते है, फिर स्वयं हृदय की धड़कन में गुरु का नाम उच्चारण होता प्रतीत होता है।
- यहा प्रक्रिया इतनी कठिन नही है और यो कहे तो इतनी सरल भी नही है। इसमे बस आवश्यक है की व्यक्ति अपने अहम को पूर्णरूप से मिटा दे। केवल कहने भर मात्रा से अहम नही मिटाता है, जब व्यक्ति स्वीकार कर लेता है की जो कुछ भी उसके जीवन में घटित हो रहा है वह गुरु की इच्छा से हो रहा है।
- ऐसी स्तिथी आने पर व्यक्ति स्वयं को गुरु से अलग अनुभव नहीं करता. प्रतिक्षण वह गुरु चरणों में लीं रहता है, भौतिक जीवन को भी जीत जाता है, अध्यात्मिकता के उच्चतम लक्ष्य की और बढ़ता रहता है..
कृपया यहाँ संदेश खाते में कोई भी किसी भी किस्म की लिंक या आलोचात्मक शब्द्द या गलत संदेश ना डाले , नियम ना मानने पर आपके खिलाफ करवाई की जाएगी और आपका गूगल खाता बंद कर दिया जाएगा।